वाराणसी, 5 जनवरी 2025। वाराणसी जिला अदालत में शनिवार को ज्ञानवापी केस की सुनवाई के दौरान एक असामान्य और चौंकाने वाली घटना घटी। अदालत के सीजेएम कोर्ट रूम में अचानक एक बंदर पहुंच गया, जिसने सभी को स्तब्ध कर दिया।
सुनवाई के दौरान बंदर अदालत परिसर में टेबल पर चढ़ता, फाइलों के पास घूमता, और कभी-कभी जिला जज के कोर्ट के गलियारों में टहलता नजर आया। इस अप्रत्याशित घटना से कोर्ट में कुछ देर के लिए हलचल मच गई, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि बंदर ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया।
सुनवाई खत्म होने के बाद, बंदर उसी सहजता से कोर्ट से बाहर चला गया जैसे वह आया था। उसकी इस अजीबो-गरीब हरकत ने न सिर्फ वहां मौजूद वकीलों और अधिकारियों को मुस्कुराने का मौका दिया, बल्कि कई लोगों को पुराने धार्मिक घटनाक्रमों की याद दिला दी।
कोर्ट में मौजूद कुछ लोगों ने इसे 39 साल पुराने राम मंदिर आंदोलन से जोड़ा। उनकी मान्यता थी कि बंदरों का भगवान हनुमान से विशेष संबंध है, और इस घटना को किसी दिव्य संकेत के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, यह मात्र एक संयोग भी हो सकता है, लेकिन इसने सुनवाई के दौरान एक अलग ही माहौल बना दिया।
घटना के बाद कोर्ट परिसर में चर्चा का विषय यह रहा कि बंदर अदालत तक कैसे पहुंचा और सुनवाई के दौरान इतनी शांति से कैसे रहा। कुछ लोगों ने इसे हंसी-मजाक के रूप में लिया, तो कुछ इसे अदालती प्रक्रियाओं से जुड़ी गहराई और पवित्रता का प्रतीक मानने लगे।
इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर भी चर्चाएं तेज हैं। लोगों ने इसे अदालत में हनुमानजी का आशीर्वाद तक कहना शुरू कर दिया है। बहरहाल, इस घटना ने जहां कुछ समय के लिए कोर्ट में हलचल मचाई, वहीं इसके पीछे के संभावित धार्मिक और सांस्कृतिक संकेतों ने इसे और भी मार्मिक और चर्चा का विषय बना दिया। वकील मदन मोहन यादव के मुताबिक ठीक ऐसी ही घटना अयोध्या में हुई तो राम मंदिर का रास्ता क्लियर हुआ।
शैलेन्द्र पाठक और लक्ष्मी देवी के फास्ट ट्रैक कोर्ट से ट्रांसफर होकर यह मामला जिला जज की कोर्ट में पहुंचा है। इस मामले में हिन्दू पक्ष के वकील सुधीर त्रिपाठी ने जिला जज संजीव पाण्डेय की अदालत में लिखित प्रार्थनापत्र दिया। मामले में अब अगली सुनवाई 18 जनवरी को होगी।
क्या थी राम मंदिर केस की घटना
1 फरवरी 1986 को अयोध्या में विवादित ढांचे के परिसर को जिला एवं सेशन जज के आदेश पर खोला गया था। अयोध्या के तत्कालीन जिला जज केएम पांडेय ने साल 1991 में छपी अपनी आत्मकथा में उस घटना का जिक्र किया है।
उन्होंने लिखा है कि वह जब ताला खोलने का आदेश लिख रहे थे, उनकी अदालत की छत पर एक काला बंदर पूरे दिन फ्लैग पोस्ट पकड़कर बैठा रहा। जो लोग फैसला सुनने के लिए आए थे, वह बंदर को फल और मूंगफली खिला रहे थे, लेकिन उसने कुछ नहीं खाया।
फैसला सुनाने के बाद वह बंदर चला गया। इसके बाद डीएम और एसएसपी उन्हें छोड़ने के लिए घर तक आए। उस समय भी वह बंदर उनके घर के बरामदे में बैठा मिला। उन्होंने लिखा है कि वह दैवीय ताकत थी और उन्होंने उसे प्रणाम किया।