भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित किया कीट नियंत्रण के लिए फेरोमोन डिस्पेंसर

भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित किया कीट नियंत्रण के लिए फेरोमोन डिस्पेंसर

Agriculture

नई दिल्ली, 19 सितंबर 2024 । जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (जेएनसीएएसआर), बेंगलुरु और आईसीएआर-राष्ट्रीय कृषि कीट संसाधन ब्यूरो (आईसीएआर-एनबीएआईआर) के वैज्ञानिकों ने एक नया स्थायी फेरोमोन डिस्पेंसर विकसित किया है। यह डिस्पेंसर कीट नियंत्रण और प्रबंधन की लागत को कम करने की क्षमता रखता है और इसकी नियंत्रित रिलीज दर के कारण किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण समाधान बन सकता है।

अब इस तकनीक को औद्योगिक उत्पादन में परिवर्तित करने की योजना है, ताकि देशभर के किसान इसका सीधा लाभ उठा सकें। इसके लिए जेएनसीएएसआर और आईसीएआर-एनबीएआईआर ने हरियाणा की कृषि विकास सहकारी समिति लिमिटेड (केवीएसएसएल) के साथ एक तकनीकी लाइसेंस समझौता किया है। इस समझौते पर प्रोफेसर एम. ईश्वरमूर्ति और डॉ. केशवन सुबेहरन ने हस्ताक्षर किए।

फेरोमोन डिस्पेंसर के फायदे

फेरोमोन डिस्पेंसर कोई नई अवधारणा नहीं है, लेकिन पारंपरिक डिस्पेंसर में फेरोमोन की अनियमित रिलीज दर के कारण उन्हें बार-बार बदलना पड़ता है, जिससे लागत और श्रम बढ़ता है। इस समस्या का समाधान करने के लिए जेएनसीएएसआर और आईसीएआर-एनबीएआईआर के वैज्ञानिकों ने अपने डिस्पेंसर में मेसोपोरस सिलिका मैट्रिक्स का उपयोग किया है। इस सामग्री की मदद से फेरोमोन अणुओं को नियंत्रित दर पर रिलीज किया जा सकता है, जिससे किसानों का कार्यभार कम होता है।

इस डिस्पेंसर के उपयोग से फायदों में शामिल हैं:

  • लंबा प्रतिस्थापन अंतराल: नियंत्रित और स्थिर फेरोमोन रिलीज के कारण डिस्पेंसर को बार-बार बदलने की आवश्यकता नहीं होती।
  • कम लागत: स्थिर रिलीज दर के कारण प्रति डिस्पेंसर आवश्यक फेरोमोन की मात्रा कम होती है, जिससे कुल लागत में कमी आती है।
  • प्रभावी कीट नियंत्रण: मेसोपोरस सिलिका मैट्रिक्स का उपयोग कीटों के नियंत्रण को प्रभावी बनाता है, जिससे किसानों को लाभ होता है।

प्रभाव और भविष्य

विस्तृत प्रयोगों और क्षेत्र परीक्षणों में इस नए डिस्पेंसर की कीट-पकड़ने की क्षमता वाणिज्यिक डिस्पेंसर के बराबर पाई गई है। इस तकनीकी लाइसेंस समझौते से उत्पादन बढ़ेगा और किसानों को क्षेत्र में कीटों का प्रभावी रूप से प्रबंधन करने में मदद मिलेगी।

जेएनसीएएसआर और आईसीएआर-एनबीएआईआर के बीच यह सहयोग सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 2, जीरो हंगर की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह परियोजना भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और डीबीटी द्वारा वित्त पोषित है, जो स्थायी कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने में योगदान करती है।