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भारत को मिलेगा वीटो का अधिकार, फ्रांस के राष्ट्रपति ने किया समर्थन

भारत को मिलेगी वीटो का अधिकार, फ्रांस के राष्ट्रपति ने किया समर्थन

न्यूयॉर्क, 26 सितंबर 2024। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों अमेरिका, रूस, चीन, यूके और फ्रांस को वीटो का विशेषाधिकार प्राप्त है। अब इस सूची में जल्द ही भारत का भी नाम शामिल होने की संभावना प्रबल हो गयी है।

26 सितंबर 2024 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक महत्वपूर्ण बयान देते हुए, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने सुरक्षा परिषद में सुधार और विस्तार की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने अपने संबोधन में स्पष्ट रूप से कहा कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता दी जानी चाहिए।

मैक्रों का यह बयान वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती भूमिका और उसके प्रभाव को मान्यता देता है। इससे पहले अमेरिका सहित कई प्रमुख देशों ने भी भारत के लिए सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट की वकालत की है।

अपने भाषण के दौरान, मैक्रों ने कहा, फ्रांस सुरक्षा परिषद के विस्तार के पक्ष में है। इसमें जर्मनी, जापान, भारत और ब्राजील जैसे देशों को स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए। साथ ही, अफ्रीका से भी दो देशों को इसमें स्थायी प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।” इस तरह के विस्तार से न केवल सुरक्षा परिषद की संरचना में विविधता आएगी, बल्कि यह 21वीं सदी के वैश्विक सत्ता समीकरणों को भी अधिक प्रासंगिक बनाएगा।

मैक्रों का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रासंगिकता और उसकी वर्तमान संरचना पर सवाल उठाए जा रहे हैं। सुरक्षा परिषद के वर्तमान स्थायी सदस्यों अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, और यूके को वीटो का अधिकार प्राप्त है, लेकिन ये देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की दुनिया के भू-राजनीतिक समीकरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। आज की दुनिया में, उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं और शक्तिशाली क्षेत्रीय खिलाड़ी भी वैश्विक निर्णयों में अपनी भागीदारी चाहते हैं।

अमेरिका का भी समर्थन

भारत को यूएनएससी में स्थायी सीट देने की वकालत सिर्फ फ्रांस ही नहीं, बल्कि अमेरिका ने भी की है। अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने हाल ही में कहा था कि भारत, जापान और जर्मनी को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए। इसके साथ ही, उन्होंने अफ्रीका के दो देशों को भी स्थायी सदस्यता दिए जाने का समर्थन किया।

अफ्रीकी देशों की बढ़ती वैश्विक महत्ता को देखते हुए, यह प्रस्ताव बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। हालांकि, अमेरिका ने ब्राजील को स्थायी सदस्यता देने पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन उसने कैरिबियाई और लैटिन अमेरिकी देशों को सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व दिए जाने का समर्थन किया है।

भारत की लंबे समय से चली आ रही मांग

भारत कई दशकों से सुरक्षा परिषद में सुधार और उसमें स्थायी सदस्यता के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहा है। दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था होने के साथ-साथ, भारत की जनसंख्या और उसकी आर्थिक व सैन्य शक्ति इसे सुरक्षा परिषद के लिए एक उपयुक्त उम्मीदवार बनाती हैं। इसके अलावा, वैश्विक सुरक्षा मुद्दों पर भारत का संतुलित दृष्टिकोण और शांति स्थापना अभियानों में उसका योगदान भी इसे इस महत्वपूर्ण संस्था का स्थायी सदस्य बनने के लिए उपयुक्त बनाता है।

भारत की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग को कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जोर-शोर से उठाया गया है, लेकिन अब विश्व स्तर पर उसके प्रभाव और महत्व के बढ़ने के साथ, कई देशों ने इस मांग का समर्थन करना शुरू कर दिया है।

क्या है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को 1945 में स्थापित किया गया था, और इसका वर्तमान ढांचा उस समय के विश्व राजनीतिक और आर्थिक समीकरणों को दर्शाता है। पांच स्थायी सदस्यों अमेरिका, रूस, चीन, यूके और फ्रांस को वीटो का विशेषाधिकार प्राप्त है, जबकि 10 अस्थायी सदस्य दो साल के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं।

हालांकि, समय के साथ वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव आया है, और कई नई उभरती शक्तियों ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसे में, सुरक्षा परिषद की संरचना को वर्तमान समय के अनुरूप बदलने की जरूरत है। इस बात को ध्यान में रखते हुए, कई देशों ने सुरक्षा परिषद में सुधार की वकालत की है।

विश्व समुदाय की प्रतिक्रिया

भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील जैसे देशों के लिए स्थायी सीट की मांग पर दुनिया के प्रमुख देशों का समर्थन बढ़ता जा रहा है। इन देशों का दावा है कि वे क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और वैश्विक सुरक्षा के मुद्दों पर इनकी भागीदारी अनिवार्य है। इसके साथ ही, अफ्रीकी देशों की बढ़ती भूमिका को भी मान्यता दी जा रही है, और उन्हें सुरक्षा परिषद में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका देने की मांग उठ रही है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की राह आसान नहीं है, क्योंकि इसमें स्थायी सदस्यों को वीटो का अधिकार प्राप्त है, जो किसी भी प्रस्ताव को रोक सकते हैं। हालांकि, वैश्विक स्तर पर बढ़ते समर्थन और मांगों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि सुरक्षा परिषद में सुधार की प्रक्रिया अब अटल है।

भारत की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग केवल एक राष्ट्रीय उद्देश्य नहीं है, बल्कि यह वैश्विक शांति और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम भी माना जा रहा है। यदि भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता मिलती है, तो यह न केवल उसकी वैश्विक स्थिति को और मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक निर्णयों में उसकी भागीदारी भी बढ़ेगी।

फ्रांस, अमेरिका और अन्य प्रमुख देशों का समर्थन भारत के इस अभियान को और भी मजबूती प्रदान करेगा, और आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार पर क्या निर्णय लिए जाते हैं।