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पालि भाषा के संरक्षण के लिए प्रतापगढ़ के शिक्षाविदों ने की ऐतिहासिक पहल

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प्रतापगढ़, 4 मार्च 2025। भारत की प्राचीनतम भाषा पालि के संरक्षण और संवर्धन के लिए जनपद के शिक्षाविदों, चिकित्सकों, विधिवेत्ताओं और बुद्धिजीवियों ने एक प्रेरणादायक पहल की। मंगलवार, 4 मार्च को इंटरमीडिएट पालि एकल विषय की परीक्षा में स्वैच्छिक अवकाश लेकर सात परीक्षा केंद्रों पर पहुंचकर उन्होंने परीक्षार्थियों के साथ परीक्षा में सहभागिता की। इस कदम का उद्देश्य युवाओं को अपनी गौरवशाली विरासत से जोड़ना और पालि भाषा को करियर विकल्प के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित करना था।

ज्ञातव्य है कि भारत सरकार ने अक्टूबर 2024 में पालि भाषा को क्लासिकल लैंग्वेज (शास्त्रीय भाषा) का दर्जा प्रदान किया। इसके साथ ही शोध, अनुवाद और उच्च अध्ययन के क्षेत्र में पालि भाषा के लिए नए द्वार खुल गए हैं। इस अभियान के तहत 28 फरवरी को हाई स्कूल की परीक्षा में लगभग 300 परीक्षार्थियों ने भाग लिया, जबकि इंटरमीडिएट परीक्षा में 350 से अधिक परीक्षार्थियों ने बैठकर इतिहास रच दिया।

संस्कृति और शिक्षा के संगम का ऐतिहासिक क्षण

इस ऐतिहासिक पहल में समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़े विद्वानों और विशेषज्ञों ने सहभागिता की। अभियान की जानकारी देते हुए राकेश कनौजिया ने बताया कि इस परीक्षा में शिक्षाविदों, न्यायविदों और बुद्धिजीवियों ने परीक्षा देकर यह संदेश दिया कि पालि भाषा केवल एक विषय नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है।

अभियान में प्रमुख रूप से शामिल विद्वान

इस अभियान में समन्वयक आचार्य डॉ. शिव मूर्ति लाल मौर्य, पूर्व बाल न्यायाधीश डॉ. दयाराम मौर्य रत्न, संरक्षिका सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापिका लीलावती, मंगल मैत्री ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी इंजीनियर राम अचल मौर्य, एडवोकेट हरिश्याम मौर्य, डॉ. दिनेश मौर्य, शोभा कनौजिया, अनीता राजीव, अभिषेक मौर्य, चंद्रकेश, वंदना प्रभांशु मौर्य, दीप किरण, ज्ञानेश्वर सिंह, मयंक सरोज, रंजू संजय, प्रशांत मौर्य, बसंत लाल मौर्य, एडवोकेट आकाश मौर्य, कंचन मौर्य, विनोद कुशवाहा, अशोक कुमार मौर्य, एडवोकेट अजय मौर्य, एडवोकेट राज गौतम, दिव्या, श्वेता मौर्य सहित अन्य प्रमुख हस्तियां शामिल रहीं।

पालि भाषा संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम

इस प्रेरणादायक पहल ने पालि भाषा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ युवाओं को इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया है। पालि भाषा केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारत की प्राचीन सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत का प्रतीक है। इस प्रयास से संस्कृति, शिक्षा और परंपरा का संगम स्थापित हुआ है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल बनेगा।

Ramesh Pandey

मेरा नाम रमेश पाण्डेय है। पत्रकारिता मेरा मिशन भी है और प्रोफेशन भी। सत्य और तथ्य पर आधारित सही खबरें आप तक पहुंचाना मेरा कर्तव्य है। आप हमारी खबरों को पढ़ें और सुझाव भी दें।

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