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संपादकीय: आस्था या निवेश का आकर्षण?

संपादकीय: आस्था या निवेश का आकर्षण?

भारत में त्योहारों का मौसम हमेशा ही खरीदारी के लिए विशेष माना गया है, और धनतेरस तो सोने-चांदी के आभूषणों की खरीद का खास दिन है। हर साल इस मौके पर लोग अपने घरों में सोना-चांदी लाने को शुभ मानते हैं। इस वर्ष, डी. खुशालभाई ज्वैलर्स के दीपक का कहना है कि उच्च कीमतों के बावजूद, लोगों ने इस धनतेरस पर जमकर खरीदारी की है। 29 अक्टूबर 2024 को सोने ने 81,000 रुपये प्रति 10 ग्राम का स्तर पार कर लिया और चांदी भी 1 लाख रुपये प्रति किलोग्राम से अधिक में बिक रही है। इन आसमान छूती कीमतों के बीच भी आभूषणों की मांग बनी रहना कई पहलुओं की ओर इशारा करता है।

धनतेरस पर सोने-चांदी की खरीद का भारत में एक धार्मिक महत्त्व है। इसे समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और लोग इसे अपने सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों से जोड़कर देखते हैं। भले ही कीमतें बढ़ती रहें, लेकिन लोग इस अवसर पर आभूषण खरीदने का मौका नहीं छोड़ते। इसका एक कारण यह भी है कि भारतीय समाज में सोने को केवल आभूषण नहीं, बल्कि एक निवेश और आर्थिक सुरक्षा के रूप में देखा जाता है। यह आस्था और वित्तीय सुरक्षा की भावना का मिश्रण है, जो लोगों को ऊंची कीमतों के बावजूद इस दिन खरीदारी करने के लिए प्रेरित करता है।

वर्तमान आर्थिक स्थिति में महंगाई और बढ़ती अनिश्चितताओं के चलते सोना और चांदी निवेश के प्रमुख माध्यम बनते जा रहे हैं। दुनिया भर में मंदी और भू-राजनीतिक अस्थिरता के कारण लोग सोने को सुरक्षित निवेश मानते हैं। जहां मुद्रास्फीति का असर है, वहीं सोने का मूल्य भी लगातार बढ़ता जा रहा है। इसी कारण निवेशकों के लिए यह एक आकर्षक विकल्प बना हुआ है। लोग सोने को अपने पोर्टफोलियो में जोड़कर वित्तीय सुरक्षा हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। उच्च कीमतों के बावजूद सोने-चांदी की मांग इसी निवेश दृष्टिकोण से भी प्रेरित हो सकती है।

2024 में सोना 81,000 रुपये प्रति 10 ग्राम और चांदी 1 लाख रुपये प्रति किलोग्राम से अधिक में बिक रही है। यह कीमतें सामान्य उपभोक्ता के लिए भारी हैं और केवल संपन्न परिवारों तक सीमित हो सकती हैं। हालांकि, इससे छोटे ज्वैलर्स और स्थानीय बाजार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है। एक आम उपभोक्ता के लिए इतनी ऊंची कीमत पर खरीदारी करना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में सोने-चांदी के साथ-साथ लोग अब नकली आभूषणों या हल्के वजन के गहनों की ओर रुख कर रहे हैं, जो सामान्य उपभोक्ता को भी अपनी परंपरा का निर्वाह करने में सक्षम बनाते हैं।

सोने-चांदी की ऊंची कीमतों के चलते आम आदमी के लिए अब यह एक कठिनाई भरा निवेश बनता जा रहा है। इस परिदृश्य में लोगों के लिए यह देखना जरूरी होगा कि भविष्य में सोने-चांदी की कीमतों में स्थिरता आती है या नहीं। यदि कीमतें ऐसी ही रहीं तो आने वाले समय में इसकी मांग में गिरावट देखी जा सकती है, क्योंकि उपभोक्ता अपने बजट को ध्यान में रखते हुए अन्य विकल्पों की तलाश कर सकते हैं।

धनतेरस पर इस वर्ष की खरीदारी ने स्पष्ट कर दिया है कि सोना-चांदी भारतीय समाज में केवल एक धातु नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और वित्तीय सुरक्षा का प्रतीक है। हालांकि, बढ़ती कीमतों के कारण यह पारंपरिक खरीदारी मध्यम वर्ग और आम जनता के लिए चुनौती बनती जा रही है। अब देखना यह है कि आने वाले समय में सोने-चांदी के मूल्य स्थिर होते हैं या इनकी बढ़ती कीमतें आम जनता को अपनी परंपरा और निवेश में कटौती करने पर मजबूर कर देंगी।