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टीवी मैकेनिक के बेटे अश्विनी शुक्ला ने पहले प्रयास में क्रैक की यूपीएससी

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जालौन, 24 अप्रैल 2025। उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के उरई में एक साधारण से परिवार की असाधारण कहानी आज हर किसी को प्रेरित कर रही है। टीवी मैकेनिक गिरीश चंद्र शुक्ला के 24 वर्षीय बेटे अश्विनी शुक्ला ने पहले ही प्रयास में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2024 में 423वीं रैंक हासिल कर अपने परिवार और जिले का नाम रोशन किया है।

यह कहानी न केवल मेहनत और लगन की जीत है, बल्कि एक मध्यमवर्गीय परिवार के अटूट समर्थन और सपनों को साकार करने की प्रेरणा भी है। अश्विनी का परिवार बेहद साधारण है। पिता गिरीश चंद्र शुक्ला एक छोटी सी टीवी रिपेयरिंग की दुकान चलाते हैं। मां शशि शुक्ला गृहिणी हैं, और छोटी बहन अभी पढ़ाई कर रही है।

आर्थिक तंगी के बावजूद गिरीश ने कभी अपने बच्चों की पढ़ाई में कमी नहीं आने दी। अश्विनी की मां शशि बताती हैं, हमारा बेटा दिन-रात पढ़ता था। हमने उसे सिर्फ सपोर्ट किया, बाकी उसकी मेहनत और भगवान की कृपा थी। इस परिवार की सादगी और एकजुटता ही उनकी सबसे बड़ी ताकत रही।

अश्विनी की यात्रा आसान नहीं थी। उन्होंने 2019 में एनडीए (नेशनल डिफेंस एकेडमी) की परीक्षा पास की थी, लेकिन आंखों की कमजोरी के कारण उनका चयन नहीं हो सका। इस असफलता ने उन्हें हतोत्साहित करने के बजाय और मजबूत किया। उसी समय उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।

ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद अश्विनी ने पूरी तरह से सिविल सेवा परीक्षा पर फोकस किया। दिन-रात की मेहनत, आत्मविश्वास और परिवार के समर्थन ने उन्हें पहले ही प्रयास में यह मुकाम दिलाया।

गिरीश चंद्र शुक्ला की आंखों में खुशी के आंसू हैं। वे भावुक होकर कहते हैं, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा बेटा इतना बड़ा मुकाम हासिल करेगा। मैंने टीवी रिपेयरिंग की छोटी सी दुकान पर काम किया, सुबह से रात तक मेहनत की, ताकि बच्चों की पढ़ाई में कोई रुकावट न आए।

आज अश्विनी ने देश की सबसे कठिन परीक्षा पास कर हमें गर्व से सिर ऊंचा कर दिया। उनकी बातों में एक पिता का गर्व और बेटे की सफलता की खुशी साफ झलकती है।

मां शशि शुक्ला भी इस उपलब्धि से अभिभूत हैं। वे कहती हैं, अश्विनी बचपन से ही पढ़ाई में अच्छा था। हमने उसे हमेशा प्रोत्साहित किया। उसकी मेहनत और लगन को देखकर हमें यकीन था कि वह जरूर कुछ बड़ा करेगा।

छोटी बहन, जो अश्विनी को अपना रोल मॉडल मानती है, कहती है, भैया ने हमें दिखाया कि मेहनत और सपनों के पीछे लगन हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। अश्विनी की सफलता केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो छोटे शहरों या साधारण पृष्ठभूमि से आता है।

जालौन जैसे छोटे जिले से निकलकर देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा में सफलता हासिल करना यह दर्शाता है कि संसाधनों की कमी सपनों को रोक नहीं सकती। अश्विनी ने अपनी तैयारी के दौरान कोई कोचिंग नहीं ली।

उन्होंने सेल्फ-स्टडी, ऑनलाइन संसाधनों और किताबों के सहारे यह मुकाम हासिल किया। उनकी दिनचर्या में 10-12 घंटे की पढ़ाई, नियमित रिवीजन और मॉक टेस्ट शामिल थे।

स्थानीय लोगों में भी अश्विनी की सफलता को लेकर उत्साह है। पड़ोसी और रिश्तेदार उनके घर बधाई देने आ रहे हैं। उरई के एक स्थानीय निवासी कहते हैं, अश्विनी ने पूरे जालौन का नाम रोशन किया है। यह हम सभी के लिए गर्व की बात है।

अश्विनी का कहना है कि वे एक IAS अधिकारी के रूप में समाज की सेवा करना चाहते हैं और खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में योगदान देना चाहते हैं।

यह कहानी उन सभी माता-पिताओं के लिए भी एक मिसाल है जो अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। गिरीश चंद्र शुक्ला जैसे पिता, जो अपनी मेहनत से बच्चों के भविष्य को संवारते हैं, और अश्विनी जैसे युवा, जो अपने दृढ़ संकल्प से असंभव को संभव बनाते हैं, समाज के लिए प्रेरणा हैं।

अश्विनी की सफलता न केवल उनके परिवार की जीत है, बल्कि यह हर उस व्यक्ति की जीत है जो मेहनत और लगन के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सपने कितने भी बड़े क्यों न हों, अगर इरादे मजबूत हों और परिवार का साथ हो, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं है।

Ramesh Pandey

मेरा नाम रमेश पाण्डेय है। पत्रकारिता मेरा मिशन भी है और प्रोफेशन भी। सत्य और तथ्य पर आधारित सही खबरें आप तक पहुंचाना मेरा कर्तव्य है। आप हमारी खबरों को पढ़ें और सुझाव भी दें।

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