रायपुर, 10 दिसंबर 2024। शासकीय काव्योपाध्याय हीरालाल महाविद्यालय में मानव अधिकार दिवस के अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मानवाधिकार के महत्व, उनकी चुनौतियों और उनके समाधान पर गहन चर्चा की गई।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व न्यायाधीश नीलमचंद सांखला ने अपने संबोधन में मानव जीवन की अनमोलता और समय के सही उपयोग पर जोर दिया। पूर्व न्यायाधीश नीलमचंद सांखला ने कहा, मानव जीवन अमूल्य है, और इसे व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए।
हर व्यक्ति को अपने जीवन के हर क्षण का सार्थक उपयोग करना चाहिए। समय का सदुपयोग ही जीवन को सफल और संतुलित बनाता है। उन्होंने यह भी कहा कि मानवाधिकारों का सम्मान और उनका संरक्षण, समाज में न्याय और समानता की भावना को मजबूत करता है।
कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ मानव अधिकार आयोग के संयुक्त संचालक मनीष मिश्रा ने मानवाधिकार संरक्षण से संबंधित संस्थानों की भूमिका और उनके कार्यों पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग और छत्तीसगढ़ राज्य मानव अधिकार आयोग के कार्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये संस्थान समाज में न्याय और समता की भावना बनाए रखने के लिए सतत प्रयासरत हैं।
मिश्रा ने बताया कि मानवाधिकार आयोग न केवल पीड़ितों को न्याय दिलाने का कार्य करता है, बल्कि वह समाज में जागरूकता फैलाने और मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं को रोकने के लिए भी काम करता है।
महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. मनीषा मिश्रा ने अपने संबोधन में मानवाधिकारों के ऐतिहासिक महत्व और उनके वतर्मान परिप्रेक्ष्य पर चर्चा की। उन्होंने कहा, मानवाधिकार केवल अधिकार नहीं हैं, बल्कि यह समाज में हर व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा करने का माध्यम हैं।
कार्यक्रम का संयोजन डॉ. मल्लिका सूर ने किया। उन्होंने मानवाधिकार: चुनौतियां और समाधान विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि बदलते समय के साथ मानवाधिकारों को लेकर नई चुनौतियां सामने आ रही हैं।
उन्होंने कहा कि आधुनिक युग में तकनीकी प्रगति, सूचना विस्फोट और डिजिटल अधिकारों के हनन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।
संगोष्ठी में अन्य शिक्षाविदों ने भी अपने विचार साझा किए। डॉ. दिव्या चतुर्वेदी, डॉ. मंजु ताम्रकर और नम्रता श्रीवास्तव ने मानवाधिकार और उनके प्रभाव पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इन वक्ताओं ने मानवाधिकारों के प्रति छात्रों और समाज के अन्य वर्गों में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया।