नई दिल्ली, 2 सितंबर 2024। शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पूरे भारत में चरम घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है। आकाशीय बिजली गिरने के प्रमुख कारणों में से एक वायु प्रदूषण भी है। मानव जनित उत्सर्जन से तूफानों की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ती है, जिससे आकाशीय बिजली गिरने की संभावना बढ़ जाती है। वर्ष 1967 से 2020 के बीच बिजली गिरने से 1,01,309 लोगों की मौत हुई है।
विशेष रूप से 2010 से 2020 के बीच मौतों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई। हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में औसत वार्षिक मौतें 1967 से 2002 के दौरान 38 से बढ़कर 2003 से 2020 के बीच 61 हो गई हैं। देश में वज्रपात के कारण हर साल औसतन 1,876 मौतें होती हैं। 2010 से 2020 के बीच 29,804 यानी लगभग एक तिहाई मौतें हुई हैं, जबकि पहले चार दशकों में 71,505 मौतें दर्ज की गई थीं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि ठंडी और गर्म हवा के मिलने पर जब गर्म हवा ऊपर उठती है, तो बादलों में कड़कड़ाहट पैदा होती है। ठंडी हवा में बर्फ के क्रिस्टल होते हैं, जबकि गर्म हवा में पानी की बूंदें होती हैं। तूफान के दौरान ये बूंदें और क्रिस्टल आपस में टकराते हैं और हवा में अलग हो जाते हैं।
बिजली गिरने का मुख्य कारण तेजी से बढ़ता तापमान है। जब धूप से अधिक गर्मी होती है, तो धरती से नमी वाली गर्म हवा ऊपर उठती है। गर्म हवा ठंडी हवा से अधिक घनी होती है, जिससे उसका प्रभाव अधिक होता है। गर्म हवा के ऊपर उठने से पानी की बूंदों में ऊर्जा प्रवाहित होती है। इस दौरान कुछ बादलों पर पॉजिटिव चार्ज हो जाता है, तो कुछ पर निगेटिव चार्ज। जब आसमान में इन दोनों चार्ज वाले बादल एक दूसरे से टकराते हैं, तो लाखों वोल्ट की बिजली उत्पन्न होती है। वर्तमान में ऐसी परिस्थितियाँ अधिक निर्मित हो रही हैं, जिससे आकाशीय बिजली की आवृत्ति और तीव्रता में लगातार वृद्धि हो रही है।