छत्तीसगढ़ में अम्बेडकर अस्पताल के रिसर्चर्स ने विकसित की बायोमार्कर किट

छत्तीसगढ़ में अम्बेडकर अस्पताल के रिसर्चर्स ने विकसित की बायोमार्कर किट

Chhattisgarh

रायपुर, 3 सितंबर 2024। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय में स्थित मल्टी-डिसिप्लिनरी रिसर्च यूनिट (एमआरयू) की वैज्ञानिकों की टीम ने एक ऐसी बायोमार्कर किट विकसित की है जो कोविड-19 संक्रमण की गंभीरता का अनुमान प्रारंभिक चरण में ही लगा सकेगी।

इस शोध के परिणाम हाल ही में प्रतिष्ठित नेचर प्रकाशन समूह की विज्ञान पत्रिका “साइंटिफिक रिपोर्ट्स” में प्रकाशित हुए हैं। यह जर्नल दुनिया का पाँचवाँ सबसे अधिक संदर्भित किया जाने वाला रिसर्च जर्नल है।

पंडित जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय की अधिष्ठाता डॉ. तृप्ति नागरिया और अम्बेडकर अस्पताल के संयुक्त संचालक एवं अधीक्षक डॉ. एस. बी. एस. नेताम ने इस अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए गए शोध के लिए एमआरयू के वैज्ञानिकों की पूरी टीम को बधाई दी है।

महामारी की शुरुआत में, जब देश के कई प्रमुख वैज्ञानिक नए कोविड-19 डायग्नोस्टिक टेस्ट किट विकसित करने में लगे थे, रिसर्च पब्लिकेशन के करेस्पोंडिंग लेखक और प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. जगन्नाथ पाल ने कोविड-19 महामारी के प्रबंधन के इस बुनियादी मुद्दे पर काम करना शुरू किया।

डॉ. पाल (एमबीबीएस, पीएचडी, हार्वर्ड कैंसर संस्थान, बोस्टन यूएसए से पोस्टडॉक.) वरिष्ठ वैज्ञानिक और एमआरयू के टीम लीडर हैं। उन्होंने बताया कि यह शोध भविष्य में किसी भी महामारी से निपटने के लिए उपयोगी हो सकता है।

डॉ. पाल के नेतृत्व में एमआरयू की रिसर्च टीम ने सीमित संसाधनों का उपयोग करके इस दिशा में काम शुरू किया और अंततः बायोमार्कर किट विकसित करने में सफलता पाई। इस किट का उपयोग कर कोविड-19 की गंभीरता का अनुमान प्रारंभिक चरण में ही लगाया जा सकता है।

इस शोध कार्य में क्यू पीसीआर आधारित टेस्ट का उपयोग करते हुए एक “सीवियरिटी स्कोर” विकसित किया गया, जिसकी संवेदनशीलता 91% और विशेषता 94% है।

इस शोध दल में एक अन्य एमआरयू वैज्ञानिक डॉ. योगिता राजपूत, पेपर की पहली लेखिका, ने विभिन्न विभागों के अन्य बहु-विषयक योगदानकर्ताओं के साथ समन्वय कर इस चुनौतीपूर्ण परियोजना को साकार रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस अनुसंधान परियोजना में चिकित्सा महाविद्यालय, अम्बेडकर अस्पताल, और यूएसए के डॉक्टरों ने भी योगदान दिया। इसमें डॉ. अरविंद नेरल (विभागाध्यक्ष, पैथोलॉजी विभाग), डॉ. निकिता शेरवानी (विभागाध्यक्ष, माइक्रोबायोलॉजी विभाग), डॉ. विजयलक्ष्मी जैन, अपर्णा साहू, आरती कुशवाहा, फुलसाय पैकरा, मालती साहू, डॉ. हीरामणि लोधी, डॉ. ओमप्रकाश सुंदरानी, डॉ. रवींद्र कुमार पंडा, डॉ. विनीत जैन, और हार्वर्ड (डाना फार्बर) कैंसर संस्थान, यूएसए से डॉ. मसूद ए. शम्मास शामिल हैं।

डॉ. विष्णु दत्त (पूर्व डीन और डीएमई), डॉ. तृप्ति नागरिया (डीन, पं. जे. एन. एम. मेडिकल कॉलेज), डॉ. विवेक चौधरी (पूर्व नोडल अधिकारी एमआरयू), और डॉ. निधि पांडे (वर्तमान नोडल अधिकारी एमआरयू) ने भी इस परियोजना को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

महामारी की शुरुआत से ही पूर्व डीएमई डॉ. एस. एल. आदिले ने इस रिसर्च प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए एमआरयू के वैज्ञानिकों को समर्थन और प्रोत्साहन दिया। आईसीएमआर के पूर्व महानिदेशक डॉ. विश्व मोहन कटोच और आईसीएमआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आशू ग्रोवर ने इस परियोजना की समीक्षा की और इसके अवलोकन के लिए प्रोत्साहित किया।

डॉ. पाल के आविष्कार के संभावित व्यावसायिक मूल्य को देखते हुए पं. जे.एन.एम. मेडिकल कॉलेज ने भारतीय पेटेंट के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट के लिए भी आवेदन किया है। डॉ. पाल के अनुसार, हाल ही में अमेरिका की पेटेंट सर्च एजेंसी ने इस आविष्कार के व्यावसायिक महत्व को दर्शाते हुए एक उत्साहजनक रिपोर्ट प्रदान की है।

इससे भारत को चिकित्सा प्रौद्योगिकी को विदेशों में निर्यात करने का अवसर मिल सकता है, जो देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान देगा। एमआरयू का यह रिसर्च प्रधानमंत्री के “मेक इन इंडिया” अभियान को भी आगे बढ़ाएगा।

आम धारणा के विपरीत, कि इस प्रकार की टेक्नोलॉजी के आविष्कार के लिए बड़े बुनियादी ढांचे, बड़े धन, और जनशक्ति की आवश्यकता होती है, यह सफलता संसाधन सीमित केंद्रों में काम करने वाले कई शोधकर्ताओं के लिए एक प्रेरक उदाहरण साबित होगी।

पं. जे.एन.एम. मेडिकल कॉलेज की यह उपलब्धि एक उत्साहजनक उदाहरण स्थापित करेगी कि एक राज्य संचालित मेडिकल कॉलेज भी समय की आवश्यकता को पूरा करने के लिए मेडिकल टेक्नोलॉजी विकसित कर सकता है और इसके व्यावसायीकरण में भी योगदान दे सकता है।