प्रतापगढ़, 5 सितंबर 2024। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के राष्ट्रीय एवं प्रांतीय आह्वान पर 5 सितंबर 2024 को प्रतापगढ़ में पार्टी की जिला काउंसिल द्वारा प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा गया। इस ज्ञापन में मुख्य रूप से जातीय जनगणना और सामाजिक न्याय से संबंधित मुद्दों पर जोर दिया गया।
ज्ञापन में कहा गया कि 2021 में जनगणना होनी थी, लेकिन कोरोना महामारी के कारण यह प्रक्रिया स्थगित हो गई। हालांकि, 2024 का आधा वर्ष बीतने के बावजूद सरकार की ओर से जनगणना को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी सबका साथ, सबका विकास का नारा देती है, लेकिन यह नारा खोखला साबित हो रहा है। पार्टी का दावा है कि भाजपा शायद इस कारण जनगणना कराने से डरती है क्योंकि इससे समाज में मौजूद असमानताएं और स्पष्ट हो जाएंगी।
ज्ञापन में आगे कहा गया कि भारत की सामाजिक संरचना सदियों से असमानताओं से भरी रही है। अमीर और गरीब के बीच अंतर तो है ही, साथ ही जाति के आधार पर व्यक्ति का भविष्य भी तय हो जाता है। ऊंच-नीच की व्यवस्था ने समाज के करोड़ों लोगों को सामाजिक बराबरी से वंचित कर दिया है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने जोर देकर कहा कि आधुनिक भारत में इस असमानता को स्वीकार नहीं किया जा सकता और संविधान निमार्ताओं ने 1950 में इस व्यवस्था को तोड़ने की दिशा में कदम उठाया था।
जातीय जनगणना की मांग
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने सरकार से जातीय जनगणना की तत्काल शुरूआत करने की मांग की है। पार्टी का कहना है कि जब तक देश के 140 करोड़ लोगों की वैज्ञानिक रूप से जातिगत आंकड़े उपलब्ध नहीं होंगे, तब तक सामाजिक न्याय सुनिश्चित नहीं किया जा सकता। समाज को यह जानना जरूरी है कि कितने लोग पिछड़े हैं और कितने लोग सामाजिक अन्याय की वजह से पिछड़ेपन का सामना कर रहे हैं।
सामाजिक न्याय की लड़ाई
ज्ञापन में कहा गया कि सामाजिक न्याय तभी मिल सकता है जब समाज के हर वर्ग को बराबरी का दर्जा मिले। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इस शिक्षक दिवस को “न्याय दिवस” के रूप में मनाने का आह्वान किया, ताकि समाज के पिछड़े वर्गों को न्याय दिलाया जा सके। पार्टी ने इस बात पर भी जोर दिया कि अगर सामाजिक न्याय मिलेगा तो गरीबी और अमीरी के बीच की असमानता भी कम हो जाएगी।
किसानों और मजदूरों की समस्याएं
ज्ञापन में प्रदेश के किसानों, मजदूरों, दलितों, पिछड़ों, छात्रों, युवाओं और महिलाओं की दयनीय स्थिति का जिक्र किया गया। इसमें कहा गया कि श्रमिक समाज के 88% लोग, जो दलित और पिछड़े वर्ग से आते हैं, वे मुख्य रूप से किसान और मजदूर हैं। वास्तविक जनगणना न होने से वे अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं। इनके बच्चे बेरोजगारी और शिक्षा की कमी के कारण संघर्ष कर रहे हैं, जबकि निजी शिक्षा और चिकित्सा महज लूट के अड्डे बन गए हैं।
भ्रष्टाचार और सरकारी तंत्र पर आरोप
ज्ञापन में राज्य और केंद्र सरकारों के विभिन्न विभागों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए। इसमें कहा गया कि बजट का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है और अधिकतर निर्माण कार्य कागजी हैं या गुणवत्ता विहीन हैं। इसके चलते किसान, मजदूर और महिलाएं आत्महत्या तक करने को मजबूर हैं। ग्राम पंचायत, जिला पंचायत, नगर निगम और नगर पंचायतों के बजट को आपसी मिलीभगत से हड़प लिया जा रहा है।
ज्ञापन में रखी गई मुख्य मांगें
- जातीय जनगणना तत्काल कराई जाए।
- संविदा और आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को नियमित कर्मचारी घोषित किया जाए।
- किसानों के कर्ज माफ किए जाएं और एमएसपी की गारंटी दी जाए।
- मनरेगा को युद्धस्तर पर चलाया जाए, जिसमें 500 रुपए दैनिक मजदूरी और 300 दिनों के काम की गारंटी हो।
- निजी शिक्षा और चिकित्सा की लूट पर रोक लगाई जाए।
- सांसद और विधायक निधि के कामों की उच्च स्तरीय तकनीकी जांच कराई जाए।
- नजूल भूमि अधिग्रहण 2024 को रोका जाए।
- ग्रामीण क्षेत्रों में 18 घंटे बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।
- अवारा पशुओं से फसलों की सुरक्षा की जाए।
- हर वर्ष हो रहे वृक्षारोपण की जांच कराई जाए।
प्रमुख नेता उपस्थित रहे
इस मौके पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कई वरिष्ठ नेता उपस्थित रहे, जिनमें राज्य परिषद के सदस्य हेमंत नंदन ओझा, जिला सह मंत्री निर्भय प्रताप सिंह, आलोक सिंह, रजनीश सिंह, राम स्वरूप पल, आसिफ अहमद, अशोक कुमार, राजू सिंगब, सीताराम, पंकज शुक्ला, राम लौट, ज्ञानेन्द्र, सुरेश शर्मा, विजय सिंह और संतोष प्रजापति शामिल थे।
ज्ञापन सौंपते समय नेताओं ने सरकार से अपील की कि वह जनगणना और सामाजिक न्याय से जुड़ी इन मांगों पर जल्द से जल्द कार्रवाई करे, ताकि समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को उनका हक मिल सके।