रायपुर, 26 अप्रैल 2025। छत्तीसगढ़ राज्य वन एवं जलवायु परिवर्तन केन्द्र, नवा रायपुर ने पृथ्वी दिवस पर दो दिवसीय सागरिया मेमोरियल राष्ट्रीय सिल्वीकल्चर संगोष्ठी का आयोजन किया। यह संगोष्ठी 22-23 अप्रैल 2025 को दंडकारण्य ऑडिटोरियम, अरण्य भवन में हुई। इसका उद्देश्य वनों के संरक्षण, संवर्धन और प्रबंधन पर विचार-विमर्श था।
दूसरे दिन की शुरुआत पहलगाम, जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले में मृतकों को श्रद्धांजलि के साथ हुई। सभी ने दो मिनट का मौन रखा। इसके बाद चार तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। पहले सत्र में वृक्षारोपण पर चर्चा हुई। सेवानिवृत्त मुख्य वन संरक्षक बी.पी. सिंह ने बीज बोआई और छोटे पौधों के रोपण के लाभ बताए। उन्होंने जड़ों के विकास पर जोर दिया। छोटे पौधों से बेहतर परिणाम मिलने की बात कही। उड़ीसा के वन संरक्षक स्वयं मलिक ने सॉफ्टवेयर और मॉडलों के उपयोग पर प्रस्तुति दी।
दूसरा सत्र वनों की उत्पादकता बढ़ाने पर केंद्रित था। मुख्य वन संरक्षक दिलराज प्रभाकर ने ऑफ्टर केयर मैनेजमेंट, सिंचाई, थिनिंग और कीट नियंत्रण पर चर्चा की। तमिलनाडु के प्रोफेसर बालासुब्रमणियम ने शोध आधारित सिल्वीकल्चर मॉडलों पर प्रस्तुति दी। त्रिपुरा के प्रवीण अग्रवाल ने अगर प्रजाति के आर्थिक लाभ बताए। जबलपुर के वैज्ञानिक राठौर दिग्विजय सिंह ने सिल्वीकल्चर सिस्टम की समीक्षा प्रस्तुत की।
तृतीय सत्र में खरपतवार उन्मूलन पर विचार हुआ। मुख्य वन संरक्षक दुग्गा ने छत्तीसगढ़ के प्रयासों पर प्रकाश डाला। प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के उपाय सुझाए गए। अंतिम सत्र बांस वनों के प्रबंधन पर था। दुर्ग के के. मेचियो और खैरागढ़ के आलोक तिवारी ने बांस प्रबंधन के कार्यों पर प्रस्तुति दी। सरगुजा के माथेश्वरन ने सिल्वीकल्चर नार्म्स की समीक्षा की। विशेषज्ञों ने सुधार के सुझाव दिए।
प्रतिभागियों के सवालों का विशेषज्ञों ने समाधान किया। प्रधान मुख्य वन संरक्षक अरुण कुमार पाण्डेय ने संगोष्ठी का सारांश प्रस्तुत किया। उन्होंने नवाचार, तकनीकी और शोध आधारित प्रबंधन पर जोर दिया। सुझावों को कार्यप्रणाली में लागू करने की बात कही। बी.पी. सिंह ने विशेषज्ञों, वन अधिकारियों और प्रतिभागियों का आभार जताया।
यह संगोष्ठी वन संरक्षण और प्रबंधन के लिए दिशा-निर्देशक रही। नवाचार और शोध पर बल दिया गया। छत्तीसगढ़ के वन प्रबंधन को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव प्राप्त हुए।