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आईआईटी भिलाई के छात्रों ने विकसित की स्मार्ट इंजेक्टेबल स्याही

आईआईटी भिलाई के छात्रों ने विकसित की स्मार्ट इंजेक्टेबल स्याही

यह 3डी प्रिंटिंग के लिए उपयुक्त होने के साथ ही अनुकूलित संरचनाओं को भी बनाने में सहायक

रायपुर, 26 सितंबर 2024। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) भिलाई ने 3डी प्रिंटिंग के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रगति करते हुए एक अत्याधुनिक स्मार्ट इंजेक्टेबल स्याही सामग्री का सफलतापूर्वक विकास किया है। यह नई सामग्री विशेष रूप से जटिल और अनुकूलित संरचनाओं को उच्च सटीकता और दक्षता के साथ बनाने में सक्षम है, जो उद्योगों के लिए क्रांति का मार्ग प्रशस्त करेगी। इस उल्लेखनीय स्याही को आईआईटी भिलाई के रसायन विज्ञान विभाग में डॉ. संजीब बनर्जी और उनकी टीम द्वारा विकसित किया गया है।

3डी प्रिंटिंग स्याही की अनूठी विशेषताएं

यह स्याही सामग्री, जो एक जेल (gel) के रूप में मौजूद है, परत-दर-परत संरचनाओं का निर्माण करने में सक्षम है, जिससे ठोस वस्तुओं का सृजन किया जा सकता है। यह प्रक्रिया 3डी प्रिंटिंग के लिए उपयुक्त होने के साथ ही अनुकूलित संरचनाओं को भी बनाने में सहायक है। इसका निर्माण विशेष प्रकार के पॉलीमर और चुनिंदा योजकों से किया गया है, जो इसे एक स्मार्ट और अत्याधुनिक सामग्री बनाते हैं।

इस स्याही की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  1. विस्कोसिटी (गाढ़ापन) का नियंत्रण: सामग्री की सटीकता को नियंत्रित करने में सक्षम होना, जिससे प्रिंटिंग प्रक्रिया के दौरान बेहतर परिणाम मिलते हैं।
  2. त्वरित कठोरता: यह स्याही तेजी से सख्त हो जाती है, जिससे जटिल और मजबूत संरचनाओं का तेजी से निर्माण संभव होता है।

इन विशेषताओं की वजह से यह स्याही स्वास्थ्य सेवा, एयरोस्पेस, और निर्माण जैसे क्षेत्रों के लिए बेहद उपयुक्त है, जहां जटिल संरचनाओं और विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने की आवश्यकता होती है।

सरल और लागत प्रभावी प्रक्रिया

आईआईटी भिलाई की टीम ने इस स्याही को न केवल सरल बल्कि एक किफायती प्रक्रिया के जरिए विकसित किया है, जिससे इसे विभिन्न उद्योगों में आसानी से अपनाया जा सके। इसकी सुलभता और उत्पादन में सरलता इसे न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अत्यधिक उपयोगी बनाती है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान

डॉ. बनर्जी और उनकी टीम का यह शोध कार्य न केवल भारतीय विज्ञान समुदाय में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय में भी सराहा गया है। उनके शोध को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका “एडवांस्ड फंक्शनल मैटेरियल्स” में प्रकाशित किया गया है, जो इस काम की गुणवत्ता और इसके भविष्य के महत्व को दर्शाता है।

विज्ञान और औद्योगिक अनुसंधान के समर्थन से मिली सफलता

इस परियोजना को विज्ञान और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर) और विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), दोनों से समर्थन प्राप्त हुआ है। भारत सरकार के इन विभागों ने आईआईटी भिलाई के इस शोध कार्य को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह सहयोग भारत में अत्याधुनिक तकनीकी विकास की प्रतिबद्धता को भी प्रकट करता है, जिससे देश के औद्योगिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में नए अवसर पैदा हो रहे हैं।

उद्योगों में संभावनाओं का विस्तार

इस नई स्याही सामग्री के विकास के साथ, विभिन्न उद्योगों के लिए संभावनाओं का विस्तार हुआ है। इसकी कुछ प्रमुख संभावनाओं में शामिल हैं:

  • किफायती उत्पादन: यह स्याही सामग्री प्रोटोटाइप और जटिल संरचनाओं को बनाने में तेजी लाने के साथ-साथ उत्पादन की लागत को भी काफी कम कर सकती है।
  • विविध क्षेत्रों में उपयोग: एयरोस्पेस, चिकित्सा उपकरण, ऑटोमोबाइल, और निर्माण क्षेत्र जैसी महत्वपूर्ण इंडस्ट्रीज़ में जटिल संरचनाओं के निर्माण के लिए इसका व्यापक रूप से उपयोग हो सकता है।
  • रैपिड प्रोटोटाइपिंग: इस स्याही का उपयोग करके उत्पादों और उपकरणों के तेजी से प्रोटोटाइप बनाए जा सकते हैं, जिससे विकास प्रक्रिया में काफी सुधार होगा।
  • स्वास्थ्य सेवा में क्रांति: स्याही की संरचनात्मक क्षमताओं के कारण स्वास्थ्य सेवा में इसका उपयोग हड्डियों, ऊतकों और इम्प्लांट्स के निर्माण में किया जा सकता है।

भविष्य की दिशा

यह स्याही न केवल उद्योगों में क्रांति ला सकती है, बल्कि यह उच्च तकनीकी अनुप्रयोगों में भी भारत की क्षमता को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देगी। आईआईटी भिलाई द्वारा विकसित यह स्याही न केवल 3डी प्रिंटिंग की दक्षता और गुणवत्ता को बढ़ाने में सहायक होगी, बल्कि यह जटिल संरचनाओं के निर्माण की प्रक्रिया को भी सरल बनाएगी।

अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के इस विकास के साथ, भारत तकनीकी नवाचार के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। आईआईटी भिलाई के शोधकर्ताओं का यह कदम इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है, जो आने वाले वर्षों में उद्योगों और समाज पर गहरा प्रभाव डालेगा।