नई दिल्ली, 12 दिसंबर 2024। कैबिनेट में 12 दिसंबर 2024 को वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक को मंजूर किये जाने के बाद बहस अब और तेज़ हो गई है। 18 सितंबर 2024 को केंद्रीय कैबिनेट ने राम नाथ कोविंद समिति की रिपोर्ट को मंजूरी देकर इसे नई दिशा दी थी।
वन नेशन वन इलेक्शन का विचार भारतीय राजनीति और प्रशासन में बड़ा बदलाव ला सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे को पहली बार 2019 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उठाया था। 2024 में स्वतंत्रता दिवस पर उन्होंने फिर से इस पर जोर दिया।
क्या है वन नेशन वन इलेक्शन
वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हों। फिलहाल, ये चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। संविधान के अनुसार, राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल पूरे होने पर चुनाव होते हैं।
हालांकि, कुछ राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, और सिक्किम में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ में होते हैं। लेकिन बाकी राज्यों में यह समय अलग-अलग होता है, जिससे देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं।
वन नेशन वन इलेक्शन की ज़रूरत
यह बहस 2018 में विधि आयोग की रिपोर्ट से शुरू हुई। रिपोर्ट के मुताबिक, अलग-अलग चुनाव कराने पर खर्च कई गुना बढ़ जाता है। साथ में चुनाव कराने से यह खर्च आधा हो सकता है।
विधि आयोग ने बताया कि 1967 तक भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे। लेकिन धीरे-धीरे क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ा और संविधान की धारा 356 के उपयोग ने इस प्रक्रिया को बाधित किया। अब, राजनीति के बदलते दौर में इसे फिर से लागू करने की बात हो रही है।
कोविंद समिति की सिफारिशें
राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने सुझाव दिए हैं-
- दो चरणों में कार्यान्वयन: पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ, और फिर 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव।
- समान मतदाता सूची: सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची का उपयोग।
- विस्तृत चर्चा और समूह गठन: इसे लागू करने के लिए विशेषज्ञों और राजनीतिक दलों से परामर्श।
क्या कहते हैं आंकड़े और रिपोर्ट?
- 1951 से 1967 तक चुनाव एक साथ हुए।
- 1999 में विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में पांच वर्षों में सभी चुनाव एक साथ कराने का सुझाव दिया।
- 2015 की संसदीय समिति की रिपोर्ट ने इसे चरणबद्ध तरीके से लागू करने की सलाह दी।
- रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि देश में व्यापक समर्थन है और इसे लागू करने के लिए तकनीकी और कानूनी ढांचे को मजबूत करना होगा।
क्या बदल सकता है
यदि वन नेशन वन इलेक्शन लागू होता है, तो देश के चुनावी खर्च में कटौती होगी, बार-बार चुनाव से आने वाली प्रशासनिक बाधाएं खत्म होंगी, और विकास कार्यों पर अधिक ध्यान दिया जा सकेगा। हालांकि, यह विचार अभी भी गहन चर्चा और सहमति की मांग करता है।
अब सवाल यह है कि क्या देश इसके लिए तैयार है, और यदि हां, तो यह बदलाव भारत के लोकतंत्र को किस तरह प्रभावित करेगा। आपकी क्या राय है?
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