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संपादकीय: जलवायु पर खेलना बंद करें

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संपादकीय: जलवायु पर खेलना बंद करें

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की नवीनतम रिपोर्ट ने एक बार फिर यह चेतावनी दी है कि 1.5°C का जलवायु लक्ष्य हमसे दूर होता जा रहा है। शीर्षक “नो मोर हॉट एयर… प्लीज़!” के साथ, यह रिपोर्ट यह साफ संदेश देती है कि यदि G20 देश अपने कार्बन उत्सर्जन में 2030 तक 50% कटौती नहीं करते, तो इस सदी के अंत तक तापमान में 3.1°C की खतरनाक वृद्धि देखने को मिल सकती है। इस स्तर की वृद्धि हमारे ग्रह के प्राकृतिक संतुलन और जीवन के लिए विनाशकारी साबित होगी। हालांकि, रिपोर्ट का संदेश यह भी है कि लक्ष्य अभी भी तकनीकी रूप से संभव है, पर केवल तभी जब हम संकल्प से परे त्वरित और ठोस कार्यवाही करें।

रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि मौजूदा जलवायु प्रतिज्ञाएं न केवल अपर्याप्त हैं, बल्कि इन्हें पूरा करने के लिए भी जी20 देशों को अपनी भूमिका बढ़ानी होगी। इस वर्ष के अंत में COP30 शिखर सम्मेलन में नई एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) प्रस्तुत किए जाएंगे, जो दुनिया की उम्मीदों के केंद्र में हैं। यूएनईपी और महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने दो टूक कहा है कि ये केवल “लक्ष्य” न रहें, बल्कि वास्तविक, मापने योग्य कार्यवाही में बदलें। गुटेरेस के शब्द, हम आग से खेल रहे हैं, लेकिन अब और समय नहीं है, सीधे हमारी जिम्मेदारी पर वार करते हैं। इसका अर्थ साफ है, वक्त निकलता जा रहा है, और इसे रोकने के लिए मौजूदा हालात में नाटकीय बदलाव जरूरी है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सौर और पवन ऊर्जा जैसे अक्षय स्रोतों में निवेश को मौजूदा स्तर से छह गुना बढ़ाना होगा, जो आवश्यक कटौती का 38% तक योगदान दे सकते हैं। इसका मतलब है कि अक्षय ऊर्जा न केवल कार्बन कटौती की दिशा में अग्रसर होगी, बल्कि यह भी दर्शाएगी कि क्या हम विकास के उन मॉडल पर अमल कर रहे हैं जो पृथ्वी के लिए सहायक हों। यह सराहनीय है कि यूएनईपी ने ठोस रणनीति भी पेश की है, जिसमें सभी देशों के बीच समग्र सरकारी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए विकासशील देशों में जलवायु वित्तीय सहायता अनिवार्य है, जिससे हर देश की क्षमता को मजबूती मिलेगी।

यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक इन्गर एंडरसन का कहना कि 1.5°C का लक्ष्य जीवन रेखा पर है, एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक अपील है। यह संदेश केवल राजनैतिक नेताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारी साझा जिम्मेदारी है कि हम अपने छोटे-छोटे प्रयासों से इस दिशा में योगदान दें। खासकर G20 देशों के लिए, जिनके एमिशन का योगदान 77% है, यह आवश्यक है कि वे वैश्विक सहयोग और निष्पक्षता के साथ आगे बढ़ें। इसका अर्थ यह भी है कि हम अपने और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के प्रति जिम्मेदार बने रहें।

अभी तक जलवायु परिवर्तन पर जिन योजनाओं और बातों का उल्लेख किया जाता रहा है, अब उसे ठोस कार्यों में परिवर्तित करने का समय आ गया है। यूएनईपी की यह रिपोर्ट केवल एक चेतावनी नहीं है, बल्कि यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी को जगाने का आह्वान है। यदि हम अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करते और ठोस कदम उठाने में असफल रहते हैं, तो जलवायु संकट के प्रभावों से बचना संभव नहीं होगा। ऐसे में केवल बाढ़, सूखा या तापमान वृद्धि ही नहीं, बल्कि मानव जीवन का अस्तित्व दांव पर लग सकता है।

हम सबको इस दिशा में कदम बढ़ाने होंगे। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हमें जलवायु संकट को वास्तविक मानते हुए तेजी से कारगर कदम उठाने चाहिए। यह हमारे और पृथ्वी दोनों के लिए निर्णायक क्षण है।

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