गांव के एक छोटे से विद्यालय में रमेश नाम का शिक्षक था। साधारण वेतन, सादा जीवन और सीमित संसाधनों के बावजूद वह बच्चों को समर्पित भाव से पढ़ाता था। उसके लिए शिक्षा देना केवल नौकरी नहीं, बल्कि एक पवित्र कर्तव्य था। वह चाहता था कि गांव के बच्चे भी बड़े सपने देखें और अपने जीवन को सार्थक बनाएं।
हालांकि, कुछ लोग उसे महज एक साधारण शिक्षक मानते और ज्यादा महत्व नहीं देते थे। उसी गांव में रोहित नाम का एक अमीर व्यापारी भी रहता था। उसके पास आलीशान बंगला, महंगी गाड़ियां और बहुत से नौकर-चाकर थे। गांव के लोग उसकी संपन्नता देखकर उसकी प्रशंसा करते थे और उसे श्रेष्ठ मानते थे।
लेकिन रोहित को अपने धन का घमंड था, और वह गरीबों को तुच्छ समझता था। वह मानता था कि श्रेष्ठता केवल धन और पद से तय होती है। एक दिन गांव में भारी बारिश के कारण बाढ़ आ गई। नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ने लगा और कुछ ही घंटों में गांव में पानी भर गया। लोग घबराकर सुरक्षित स्थान की ओर भागने लगे।
रोहित ने तुरंत अपने परिवार को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने की व्यवस्था की, लेकिन उसने गांव के दूसरे लोगों की मदद करने के बारे में नहीं सोचा। वहीं दूसरी ओर, रमेश ने बिना समय गंवाए गांव के लोगों की मदद करने का बीड़ा उठाया। वह अपनी जान की परवाह किए बिना बाढ़ में फंसे बुजुर्गों और बच्चों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने लगा।
उसने गांव के मंदिर को अस्थायी आश्रय स्थल बना दिया और वहां रहने, खाने और दवाइयों की व्यवस्था करने में जुट गया। जब प्रशासन की राहत टीम आई, तो उन्हें गांववालों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने में रमेश का सहयोग मिला। उसने दिन-रात मेहनत करके सभी की सहायता की।
उसकी नि:स्वार्थ सेवा देखकर गांव के लोग भावुक हो गए। उन्होंने समझ लिया कि असली श्रेष्ठता पद और पैसे में नहीं, बल्कि विचारों और कर्मों में होती है। बाढ़ के बाद जब गांव में हालात सामान्य हुए, तो रोहित का अहंकार भी चूर-चूर हो गया। उसने देखा कि गांववाले रमेश की प्रशंसा कर रहे हैं और उसकी सेवा भावना को नमन कर रहे हैं।
उसने महसूस किया कि उसका धन और रुतबा किसी काम का नहीं था, जबकि रमेश का नि:स्वार्थ प्रेम और सेवा ही उसे सच्चा श्रेष्ठ बना गई थी। रोहित ने रमेश से माफी मांगी और अपने धन का उपयोग समाज की भलाई के लिए करने का संकल्प लिया।
वह अब समझ गया था कि श्रेष्ठता का पैमाना धन और पद नहीं, बल्कि विचार और कर्म होते हैं। इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि श्रेष्ठता हमारे पद और पैसे से नहीं, बल्कि हमारे विचारों और व्यवहार से तय होती है। सच्ची महानता सेवा, करुणा और नि:स्वार्थ प्रेम में निहित होती है।