जब कोरोना वैक्सीन को लेकर शिकायतों और चर्चा का माहौल गरम है, तो अन्य सभी वैक्सीनों पर पूरी सतर्कता के साथ विचार करने की जरूरत है। एस्ट्राजेनेका कंपनी ने जब से यह माना है कि उसके द्वारा निर्मित वैक्सीन कोविशील्ड की वजह से विरल मामलों में कुछ लोगों को नुकसान की आशंका है, तब से पूरा टीकाकरण अभियान ही सवालों के घेरे में है। लोग तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं और अपने-अपने नुकसान का आकलन भी कर रहे हैं।
ब्रिटेन में एस्ट्राजेनेका को अनेक मुकदमों का सामना करना पड़ रहा है और सजा के तौर पर उसे बड़े पैमाने पर मुआवजा चुकाने की भी जरूरत पड़ सकती है। खैर, मुकदमे और मुआवजे अपनी जगह हैं, पर लोगों में मन में जो शंकाएं घर कर गई हैं, उन पर सावधानी से सोचने की जरूरत है।
लगभग सभी चिकित्सकों का यही मानना है कि टीका लेने के बाद चालीस दिन में साइड इफेक्ट सामने आ जाते हैं, पर जब टीका लगे दो साल से ज्यादा समय बीत चुका है, तब साइड इफेक्ट की चर्चा का बहुत महत्व नहीं है।
वैसे, साइड इफेक्ट को साबित करने का काम आसान नहीं है। हमने यह देखा है कि महामारी ने उन लोगों को ज्यादा परेशान किया था, जिन्हें पहले से कोई बीमारी थी। ऐसे लोगों को टीका लेते समय भी सावधान रहने के लिए कहा गया था, उम्र या वर्ग के हिसाब से धीरे-धीरे लोगों को टीके दिए गए थे। टीका देते समय और उसके ठीक बाद तात्कालिक रूप से लोगों की निगरानी भी की गई थी।
भारत में साइड इफेक्ट की शिकायत अगर सामने आई है, तो उसका पूरी तरह से वैज्ञानिक अध्ययन होना चाहिए। फिलहाल यह मुद्दा चुनाव में भी गरम है, पर यह आगामी केंद्र सरकार के लिए एक गंभीर विषय होना चाहिए। चिकित्सकों की संस्था को गोपनीयता बरतते हुए वैक्सीन के दुष्प्रभावों का अध्ययन करना चाहिए।
भारत में किसी बड़ी दवा कंपनी के खिलाफ खुले रूप में जांच करना असहज स्थिति पैदा कर सकता है। दरअसल, यह शिकायत आम लोगों का विषय नहीं, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का विषय है। आम लोगों की शंकाओं को भी तभी दूर किया जा सकता है, जब शिकायतों का विशेषज्ञता के साथ अध्ययन किया जाए।
यह अच्छी बात है कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड कोविड-19 वैक्सीन के संभावित दुर्लभ दुष्प्रभावों की रिपोर्ट के बीच ‘कोवैक्सिन’ विकसित करने वाले संस्थान भारत बायोटेक ने बयान में कहा है कि कोवैक्सिन का पूरी तरह से परीक्षण किया गया था। कोविशील्ड और कोवैक्सिन का ही भारत में सर्वाधिक उपयोग हुआ था।
मतलब, फिलहाल कोविशील्ड लेने वाले चिंता में हैं, जबकि कोवैक्सिन लेने वाले थोड़े आश्वस्त हैं। वास्तव में, एस्ट्राजेनेका को विशेष तौर पर लोगों की शंकाओं को दूर करना चाहिए। उसकी वजह से कई देशों में करोड़ों लोग शंकाग्रस्त हैं। भारत सरकार को भी ब्रिटेन में चल रहे मुकदमों पर नजर रखनी चाहिए।
अगर एस्ट्राजेनेका की गलती सामने आती है, तो भारत को भी अपने हिसाब से इस कंपनी से निपटना होगा। यह एक ऐसा मामला है, जो हमें अपने स्वाथ्य के प्रति सजग बनाता है। किसी भी दवा को लेने की स्थिति में दुष्प्रभावों को लेकर हमें सजग होना चाहिए। ऐसा होना चाहिए, ताकि चिकित्सा सेवा की गुणवत्ता को पूरी तरह से सुनिश्चित किया जा सके।
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