उत्तर प्रदेश के लोकगीतों में दिये गये है मोहक सन्देश

10-January-2024

उत्तर प्रदेश वह प्रदेश है जहां हर गली, हर कूचे में लोकगीतों के स्वर गूजते रहते है। परिवार के उत्सवों में, चाहे विवाह हो, चाहे बेटी की विदाई हो, चाहे होली या दिवाली हो सभी में लोग अपनी बोली बानी के गीत गाते है। ये गीत मन के भीतरी परतों से उभरतें है इसलिए इनमें बड़ी सहज भाषा का प्रयोग होता है। इसके अतिरिक्त इन गीतों में प्रकृति के निराली छँटा के दर्शन भी होते है उत्तर प्रदेश के गीतों में पारिवारिक परम्पराएँ स्थल स्थल पर देखने को मिलती है। ऐसा लगता है कि जैसे ऐ लोकगीत उत्तर प्रदेश के जनजीवन के आकर्षक चित्र हो।


उत्तर प्रदेश के गाँवो में हर पर्व, हर उत्सव एवं हर मार्गलिक अवसर पर गीत गाये जाते है यहाँ के गृहस्थ जीवन के इतने सार्थक चित्र इन गीतों में चित्रित है जो हमारी जीहवन शैली और हमारी संस्कृति का परिचय सहज ही दे देते है, कन्या का विवाह एक पैसा अवसर जहाँ पूरा परिवार भाव विभोर होकर अपना सहयोग देता है और परिवार ही नही बल्की पूरा गाँव इसमें समलित हों जाता है। लोकगीतों में परिवार का अर्थ है संयुक्त परिवार। अपने परिवार पर गर्व करती हुई एक लड़की गाती है... 


सागर अस हमरे बाबा, गंगा जमुन अस गाई, चाँद सूरज अस भईया जे हमरे सैया कमलवा के फूल, परिवार के अन्य सदस्य भी इन गीतों में चित्रित है पति और पती की बहन अपनी ननद की प्रशंसा करती हुई कहती है... चंदा ऐसइन मोर बलम जी, सूरज घाहे ज्योति बिजुरी ऐरान गोर ननदिया चमके चारो ओरी ।


परिवार में बुआ की उपस्थित भी रस्म और तीज त्योहार में जरूरी है एक शुभ अवसर पर सब नातेदार है पर बुआ नही आई, उनकी अनुपस्थित से माहौल में कमी लग रही है... एक लोक गीत की ये पक्तियाँ इस कमी का बयान कर रही है...... ताल मरि बैठले हंस तलैया भर हंसिन तबहुन तलवा सुहावन एक रे कैवल बिनु/ माढव भरि बैठले गाते ओसारा भरि गोतिन तबहुन न गढ़वा सुहावन एक रे फुआ बिनु...


इसका अर्थ है हंसो से भरा सरोवर है तलैया इंसिनियों से भरी है किन्तु कमल के बिना ताल तलैया सुहावने नही लगते। इसी प्रकार मण्डप में समारोह स्थल में परिवार के सभी लोग मरे हुए है परन्तु बुआ वहीं नहीं आ पायी अतः मण्डप की शोमा अधूरी है। हर नाते रिश्तें की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है। बुआ भी महत्वपूर्ण है अतः उनके बिना समरोह का मण्डप सार्थक नही लगता सब कुछ अपूरा अधूरा लग रहा है।


परिवार में तरह तरह की बात चीत होती रहती है, इस बात चीत परिवार के सभी सदस्यों की प्रशंसा होती रहती है। एक बेटी ने कई प्रश्न अपने पिता से पूछे पिता ने सब के उत्तर दिये ये उत्तर मन को भीतर तक रस रिक्त कर देते है । एक लोक गीत में गाये जाने वाले ये प्रश्न और उत्तर इस तरह से है बेटी अपने बाबा से पूछती है काहे बिनु सूना अगनवा ऐ बाबा, काहे बिनु सूना लखराव, काहे बिनु सूना दुअरवा ऐ बाबा, काहे बिनु पोखरा तोहार ? बाबा उत्तर देते हुए कहते है चिया बिनु सूना अगनवा ऐ बेटी, कोइलर बिनु लखराव, पूत बिनु सून दुअरवा ऐ बेटी हंस बिनु पोखरा हमार ।


अर्थत बेटी के बिना हगार आंगन सूना है कोयल के बिना हमारी बगिया सूनी है, पुत्र के बिना द्वार और हंस के बिना हमारा तालाब सूना है। बेटी ने फिर पूछा बाबा ये सूना पन कैसे भरेगा ? तब बाबा कहते है धर्म से घिया जनमिहे ये बेटी सेवा से लखराव, तप से पुतवा जनमिहे ये बेटी दान से हंस मझधार...


अर्थत धर्म के फल से बेटी जन्म लेती है सेवा से आम का बाग तैयार होगा तप से पुत्र का जन्म होगा और दान देने से सरोवर में हंस आयेगे । परिवारिक जीवन की सफलता के मन्त्र इस गीत में दिये गये है यहाँ बेटा और बेटी में कोई भेद नहीं है यह आदर्श अपने आप एक ऐसा सन्देश देता है जो किसी भी परिवार में सुख और शान्ति को प्रतिष्ठित करेगा।


एक लोकगीत में विवाह के एक रस्म सात भवरें या सप्तपदी का चित्र है। कन्या किस तरह से इन सात स्थितियो में रहेगी? यह भावरे कन्या को नये सम्बन्ध यानी पति, गृह से नाता जोड़ने का सन्देश देती है ? यह मार्मिक गीत इस तरह है। पहली भावर फेरी धिया कन्या कुमारी है... दूसरी मावर फेरी कन्या गाँ की लढली है. .....तीसरी भावर फेरी कन्या बीरनकी प्यारी है, चौथी मावर में कन्या पीहर छोड़ रही है, पाँचवी भावर में ससुराल की तैयारी है, छठी भावर फेरी कन्या सास की प्यारी है सातवी भावर फेरी कन्या वर की हो गई ।


एक बेटी विवाह के शुभ अवसर पर अपने पीहर से दूर होती जाती है और वह ससुराल में आकर परिणीता बन जाती है। ससुराल वधू का स्वागत ऐ अनूठा त्योहार बन जाता है। ऐसे मंगल गीत नववधू को उल्लास से भर देते है नया खपरैला छवाऊ रे नये घरे दुलहिन आई ससुराल पक्ष का यह मंगल गीत वधू के मन से वह उदासी निकाल देता है जो कि विदा की बेला में उसके मन पर छा गया था उत्तर प्रदेश के ये लोकगीत गर्म सपर्शी भावों से परिपूर्ण है एक ओर इनमें जीवन के यथार्थ चित्र है तो दूसरी ओर जीवन को सुन्दर एवं भावनापूर्ण बनाने के लिए मोहक सन्देश दिये गये है। 


प्रस्तुति - ओमप्रकाश श्रीवास्तव 


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