रायपुर, 22 अप्रैल 2023। बिलासपुर के आईजी आईपीएस रतनलाल डांगी ने लोकसेवा दिवस 21 अप्रैल 2023 पर प्रतियोगी परीक्षार्थियों को प्रेरक संदेश दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया। इस पोस्ट में पूरी तैयारी करने के बाद भी असफलता का सामना करने वाले प्रतियोगी परीक्षार्थियों को उन्होंने निराश न होने और सफलता के लिए कदम आगे बढ़ाने का संदेश दिया। आइए जानते हैं पोस्ट में आईपीएस अधिकारी रतनलाल डांगी ने क्या लिखा-
रतनलाल डांगी ने लिखा -क्या आप भी अपनी पूरी क्षमता से बढ़कर तैयारी करने के बाद भी अपने लक्ष्य को न पाने से हताश-निराश हो जाते हैं? तैयारी छोड़ने का मन करता है। क्या ऐसा भाव भी मन में आने लगता है कि अब बहुत हो गया? हमें अपने लक्ष्य को भूल जाना चाहिए। तो थोड़ा रुकिये मैं आपको उस हताशा- निराशा से बाहर आने का उपाय बताता हूं। हो सकता है वो आपके लिए उपयोगी हो। एक बार इस पर जरुर नजर डालिए।
आईपीएस श्री डांगी ने बताया कि इस दुनिया में केवल आप अकेले नहीं हैं जिसके साथ ऐसे हो रहा है। जो कोई भी बड़ा लक्ष्य लेकर चलता है उन सबके साथ ऐसा होता ही है। न केवल हम लोगों के साथ बल्कि संसार के महान व्यक्तित्व के धनी लोगों के साथ भी ऐसा हुआ है।
वो भी अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं होने से निराश होकर उसे त्यागने का मन बना चुके थे। लेकिन एक छोटी सी घटना से सबक लेकर पुन: अपने लक्ष्य को पाने में जुट गये थे और अपना लक्ष्य पाकर ही रहे। इसलिए हम सबको मन में आने वाले हर ऐसे भाव को हराकर आगे बढ़ना चाहिए।
IPS श्री डांगी ने भगवान बुद्ध का उदाहरण देते हुए बताया कि भगवान बुद्ध आत्मज्ञान की खोज में तपस्या कर रहे थे। उनके मन में विभिन्न प्रकार के प्रश्न उमड़ रहे थे। उन्हें प्रश्नों का उत्तर चाहिए था लेकिन अनेक प्रयासों के बाद भी उन्हें सफलता नहीं मिली। वे आत्मज्ञान ही प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करने लगे।
अनेक कष्ट सहन किये, कई स्थानों की यात्राएं की परंतु जो समाधान उन्हें चाहिए था, वह उन्हें नहीं मिला। एक दिन उनके मन में कुछ निराशा का संचार हुआ। सोचने लगे धन, माया, मोह और संसार की समस्त वस्तुओं का भी त्याग कर दिया फिर भी आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। क्या मैं कभी आत्मज्ञान पाप्त कर सकूंगा? हमें आगे क्या करना चाहिए? इसी प्रकार के अनेक प्रश्न बुद्ध के मन में उठ रहे थे।
तपस्या में सफलता की कोई किरण दिखाई नहीं दे रही थी और इधर बुद्ध ने प्रयासों में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। वे उदास मन से इन्हीं प्रश्नों पर मंथन कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें प्यास लगी। वे आसन से उठे और जल पीने के लिए सरोवर के पास गये। वहां उन्होंने एक अद्भुत दृश्य देखा।
भगवान बुद्ध ने देखा एक गिलहरी मुंह में कोई फल लिए सरोवर के पास आयी। फल उससे छूटकर सरोवर में गिर गया। गिलहरी ने देखा फल पानी की गहराई में जा रहा है। गिलहरी ने पानी में छलांग लगा दी। उसने अपना शरीर पानी में भिगोया और बाहर आ गई।
बाहर आकर उसने अपने शरीर पर लगा पानी सुखाया और पुन: सरोवर में कूद गयी। उसने यह क्रम जारी रखा। बुद्ध उसे देख रहे थे लेकिन गिलहरी इस बात से अनजान थी। वह लगातार अपने काम में जुटी रही। बुद्ध सोचने लगे ये कैसी गिलहरी है। सरोवर का जल यह कभी सुखा नहीं सकेगी लेकिन इसने हिम्मत नहीं हारी। यह पूरी शक्ति लगाकार सरोवर को सुखाने में जुटी है।
अचानक बुद्ध के मन में एक विचार का उदय हुआ। यह तो गिलहरी है फिर भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में जुटी है। मैं तो मनुष्य हूं। आत्मज्ञान प्राप्त नहीं हुआ तो मन में निराशा के भाव आने लगे। मैं पुन: तपस्या में जुट जाऊंगा। इस प्रकार महात्मा बुद्ध ने गिलहरी से भी शिक्षा प्राप्त की और तपस्या में जुट गये। एक दिन उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हो गया और वे भगवान बुद्ध हो गये।
आईपीएस रतनलाल डांगी ने संदेश देते हुए कहा है कि हमको भी अपने आसपास होने वाली कुछ घटनाएं एक हिम्मत हौसला दे सकती है बस हमको चौकन्ना रहना चाहिए। यदि बार-बार प्रयास के बाद भी सफलता न मिले तो भी निराश नहीं होना चाहिए और पुन: प्रयास करना चाहिए। एक दिन निश्चित ही अपना लक्ष्य मिलेगा।
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