अभियंता परिषद के संयोजक गिरिधारी सागर ने उठाये सवाल
रायपुर। गंभीर पेयजल संकट की आहट के बाद भी रायपुर नगर निगम प्रशासन लगातार ऐसा कार्य कर रहा है जिससे भूजल का दोहन हो रहा है और शुद्ध पेयजल प्रदूषित हो रहा है। नगर निगम प्रशासन यह कार्य जानबूझकर कर रहा है या जानकारी के अभाव में कर रहा है। नगर निगम द्वारा की जा रही इस लापरवाही पर अभियंता परिषद के संयोजक गिरिधारी सागर ने सवाल उठाये हैं। गिरिधारी सागर ने कहा है कि नगर निगम को तत्काल अनावश्यक भूजल दोहन के कार्य को बन्द करना चाहिये।
वर्तमान मे नगर निगम रायपुर अपने तालाब भूजल का दोहन करके से भर रहा है अर्थात वर्षो से प्राकृतिक रूप से जमीन के अन्दर संग्रहित जल पंप सेट लगाकर तालाब मे भरा जा रहा है । यानि भूजल (शुद्ध पेयजल) को तालाब मे भर कर अशुद्ध जल मे परिवर्तित किया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर गिरिधारी सागर ने डगनिया तालाब की तस्वीर दिखाते हुए कहा है कि भूजल से लाखों लीटर शुद्ध पानी निकाल कर तालाब भर दिया है।
आज भी निरंतर ट्यूबवेल से पानी की निकासी जारी है। इसी तरह निगम के अंतर्गत कई तालाबों में पानी भूजल का दोहन करके भरा जा रहा है। एक समय आयेगा जब भूजल समाप्त हो जायेगा क्योंकि भूजल बूंद-बूंद कर वर्षो से प्राकृतिक रुप से रिचार्ज हो कर धरती के भीतर संग्रहित होता है। अनावश्यक भूजल दोहन प्रकृति के साथ खिलवाड़ व अमानवीय है। पृथ्वी का पर्यावरण संरक्षण मे जल एक अभिन्न अंग है।
रायपुर मे अत्यधिक गर्मी का मौसम रहता है कहीं ऐसा न हो यहाँ का भूजल स्तर भी अत्यधिक नीचे पहुंच जाये। शहर मे जमीन के अन्दर पानी जाने के सारे रास्ते बन्द होते जा रहे है। सड़क किनारे जो घर आंगन के सामने खाली जमीन रहती है उसमे भी कांक्रीट कर उसके उपर पेवर लगा रहे हैं। जबकि पेवर के नीचे केवल रेत होना चाहिये जिससे वर्षा ऋतु मे उनके ज्वाइंट से पानी रेत से होकर जमीन के अन्दर रिचार्ज होता रहे। लेकिन यहां भी कांक्रीट कर फिर रेत डाल कर उसके उपर पेवर जोड़ रहे हैं। कांक्रीट कर देने से जमीन के अन्दर प्राकृतिक रूप से पानी जाने की व्यवस्था ही समाप्त कर दी जा रही है।
रायपुर शहर के रिचार्ज की प्रमुख स्त्रोत शहर मे मध्य महानदी नहर की 16 किमी लम्बी वितरक नहर थी जो सम्पूर्ण रायपुर के टॉप मोस्ट लेवल से होकर खारून नदी मे मिलती थी। उसे बन्द कर वह कैनाल बन गई । अंग्रेजों के जमाने की यह नहर पूरे रायपुर शहर के भूजल को रिचार्ज कर देती थी। आस पास के सुखे ट्यूबवेल जीवंत हो उठते थे।
हमने एक प्रकृति प्रदत्त रिचार्ज सिस्टम खो दिया है। नगर निगम के तकनीकी सलाहकारों को यदि रोड़ की ही आवश्यकता थी तो नहर को यथावत रखते हुए दोनो किनारों पर रोड़ बनाई जा सकती थी । शहर भी सुन्दर होता और आसपास के तालाब भी नहर के पानी से भरते व किसानों की जमीन भी सिंचित बनी रहती।
गिरिधारी सागर का कहना है कि अब जो खो दिया उसे पाया नहीं जा सकता लेकिन जो उपलब्ध है उसे सहेजा जाना चाहिये। नगर निगम रायपुर के जनप्रतिनिधियों और अधिकारियो तथा शहर के गणमान्य नागरिकों से आग्रह है कि तत्काल उपरोक्त बिन्दुओं पर संज्ञान ले। रायपुर शहर के नागरिकों को भविष्य मे जल संकट का सामना न करना पड़े।
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