पुलिस की अकर्मण्यता का प्रतीक नागाडबरा हत्याकांड

29-February-2024

एनडी मानिकपुरी

छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले ग्राम नागडबरा पंडरिया में तीन आदिवासियों की नृशंस हत्या उपरांत आग लगाकर साक्ष्य मिटाने का प्रयास किया गया। पुलिस इसे साधारण घटना मानकर प्रकरण समाप्त करने के तैयारी में थी जो पुलिस विवेचना में घोर लापरवाही सबसे बड़ा उदाहरण है। दर्जनभर से अधिक लोगों ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया और पुलिस इसे सामाधरण आगजनि मान रही थी जो बेहद हास्यास्पद और मूर्खतापूर्ण है।


स्वतंत्र भारत के इतिहास में शायद ही ऐसी कोई घटना हुई हो जिसमें पूरा गांव पुलिस अधीक्षक के कार्यालय पहुंचकर पुलिस अधीक्षक से कहा कि आप झूठ बोल रहे हो, आपकी विवेचना में त्रुटि है। पहले तो पुलिस अधीक्षक ने अपने अधिकार एवं प्रभाव दिखाकर भारी उदंडता दिखाई, लेकिन बाद में उन्हें सच के आगे झूकना पड़ा। नागाडबरा हत्याकांड प्रारंभिक विवेचना की दिशा पुलिस अकर्मण्यता का प्रतीक है।


किसी सरकारी तंत्र का आम जनता का सीधे तौर पर जुड़ने वाली एजेंसी पुलिस है। ऐसा माना जाता है कि संविधान में प्रदत्त लोगों की संवैधानिक अधिकारों की रक्षा न्यायालय से पहले पुलिस करती है और जनता की रक्षक बनकर हमेशा उनके साथ खड़ी रहती है। जनता यह उम्मीद करती है कि पुलिस किसी के प्रभाव में आय बिना ही उनकी शिकायतों का विधि के अनुरूप निश्पक्षतापूर्वक जांच करे। छत्तीसगढ़ के नागाडबरा हत्याकांड में छत्तीसगढ़ पुलिस गतिविधि समूचे विभाग पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया।  


घटना दिनांक 14 एवं 15 जनवरी 2024 की दरम्यानी रात की है। जिसमें 35 वर्षीय बुधराम सिंह बैगा, 32 वर्षीय उसकी पत्नी श्रीमती मोहतिनबाई तथा उनके 12 वर्षीय सुपुत्र जोन्हू बैगा की कुल्हाड़ी मारकर नृशंस हत्या की गई। हत्यारों ने उनकी लाश को आग के हवाले कर दिया। पुलिस पहले इसे गैस सिलेंडर का लिक होने के कारण आगजनि की घटना बताई जबकि दिवंगत परिवार ने बीते 6 माह से गैस सिलेंडर का रिफिलिंग नहीं करायी थी। बाद में पुलिस ने अंगेठी से आग लगने की बात कही।


स्थानीय भाजपा विधायक भावना बोहरा इसे प्राकृतिक आपदा मानकर दिवंगत के रिश्तेदारों को ₹50000 रूपए नकद सहायता राशि दे दी। वहीं छत्तीसगढ़ शासन की प्राकृतिक आपदा के मुआवजा के संबंध में राजस्व पुस्तक परिपत्र की धारा 6(4) के तहत जिला प्रशासन ने चार-चार लाख रूपए की मुआवजा राशि तत्काल मृतकों के परिजनों को दे दिया जबकि मुआवजा वितरण करते समय पुलिस खात्मा रिपोर्ट का होना अनिवार्य है। 


नागाडबरा की घटना छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री एवं गृहमंत्री विजय शर्मा के गृह जिले का है। इस पूरे मामले को राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने प्रमुखता के साथ उठाया। पीसीसी चीफ दीपक बैज ने जांच कमेटी बनाई और जांच करवायी। कांग्रेस लगातार आरोप लगाती रही है कि पुलिस सही दिशा में विवेचना नहीं कर रही है। कांग्रेस और आम जनता ने पुलिस सही विवेचना के दबाव बनाया।


इतना ही नहीं कांग्रेस के पदाधिकारियों ने घटना के चक्षुसाक्षी को संरक्षण देकर पुलिस के भय से बचाया। कांग्रेस के पदाधिकारी चक्षुदर्शियों को पुलिस अधीक्षक के कार्यालय तक लेकर गए। इस मामले में मीडिया ने भी अपना सही धर्म निभाया। तब पुलिस के हाथ आरोपियों के गिरेबान तक पहुंची। 


दंड प्रक्रिया संहिता में पुलिस को असिमित शक्ति दी गई है। उन शक्तियों का उपयोग कर पुलिस किसी अपराधी को पकड़ सकती है, उसे अपराध करने से रोक सकती है, झूठ के अंधेरे को चिरकर सच को बाहर ला सकती है, दोशियों को सलाखों को पहुंचा सकती है और निर्दोष को कारागार में जाने से बचा सकती है। पुलिस के हाथ में विवेचना और अभियोग पत्र तैयार करने शक्ति है।


उस शक्ति का पुलिस यदि सकारात्मक दिशा में उपयोग करेगी तो समाज में बदलाव आएगा, पुलिस के प्रति लोगों का दृष्टिकोण बदलेगा और आम जनता पुलिस पर विश्वास करेगी। इस शक्ति का पुलिस यदि नकारात्क दिशा में करेगी तो समाज में अराजकता व्याप्त होगी और निर्दोश अनगिनत लोगों का सुनहरा भविष्य गुमनामी के अंधेरों में खो जाएगा। 


छत्तीसगढ़ में कई जिलों के विभिन्न पुलिस थाना क्षेत्र में नागाडबरा जैसी अनगिनत कहानी छिपी हुई है। जिसमें फर्जी नक्सली बताकर अनकाउंटर करना। झूठे नक्सली प्रकरणों में फंसाकर न्यायालयों की चक्कर लगवाना आदि शामिल है। छत्तीसगढ़ के विभिन्न पुलिस थानों की किसी भी मामले में समझौते के लिए दबाव डालना, देहज के झूठे प्रकरण में फंसाना, हत्या करने वाले दोषी ससुराल वालों को बचाना, गरीबों की जमीन हड़पने वाले बिल्डर को संरक्षण देना, राजनीतिक संरक्षण प्राप्त गुर्गों के पक्ष में बात करना, किसी भी मामले में किसी अनजान व्यक्ति का नाम जोड़ देना, सामान्य मारपीट से लेकर चोरी, डकैती, लूट, रेप, हत्या और आतंकवाद जैसे मामले में छत्तीसगढ़ निर्दोश लोगों के नाम पर एफआईआर कर देती है।


हालांकि ज्यादातर प्रकरणों में आरोपी माननीय न्यायालय से दोषमुक्त  हो जाते हैं, लेकिन तब तक उनका समाज और इस व्यवस्था के प्रति दृष्टिकोण बदल जाता है और उनका पूरा परिवार तबाह हो जाता है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि छत्तीसगढ़ पुलिस ज्यादातर प्रकरणों के विवेचना के दौरान पीड़ित और आरोपीपक्ष के लोगों को थाने में ही बुला लेती है। दोनों पक्षों से बयान और मान-सम्मान जिसे वह अपना अधिकार समझती है लेकर अभियोग पत्र तैयार करती है। दोनों पक्षों के बयान लेने के बाद एक फार्मेट में बाकी फार्मेल्टी लिखकर न्यायालय में प्रस्तुत कर देती है, जिसे लोग चालान या अभियोग पत्र कहते हैं।


इस अभियोग पत्र में पुलिस उसे आरोपी बनाती है, जिसका मान-सम्मान का वजन कम हो, जिसका वजन अधिक है वह पीड़ित पक्षकार बन जाता है। छत्तीसगढ़ में पुलिस की स्थिति ऐसी है कि पुलिस जनता से सहयोग की अपेक्षा में यदि कोई फोन काॅल करे तो जनता के मन में यह भय होता है कि पुलिस उन्हें किसी मामले में तो नहीं फंसा देगी। यह कहा जाता है कि पुलिस वास्तविक अपराधी तक पहुंचने के लिए लोगों पर संदेह करती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में जनता पुलिस और पुलिस के कामकाज पर संदेह करती है, जो भावी पीढ़ी के लिए घातक है।


फिल्मी दुनिया के रूपहले पर्दों पर पुलिस को समाज के रक्षक के रूप दिखाई जाती है। रील की तरह रीयल लाइव में छत्तीसगढ़ पुलिस कब काम करेगी छत्तीसगढ़वासी प्रतीक्षारत में है। पुलिस के कामकाज पर कब बदलाव आएगी, छत्तीसगढ़ में कब नया सबेरा होगा, यह बता पाना अभी मुश्किल है। फिर भी इसकी शुरुआत किसी एक जिम्मेदार पुलिस अफसर को करना होगा। छत्तीसगढ़ शासन छत्तीसगढ़ पुलिस को उचित प्रशिक्षण दे ताकि वे  विधि के अनुरूप विवेचना कर सके। जनप्रनिधि पुलिस के कामकाज पर दबाव ना डालें और उन्हें विधि के अनुरूप स्वतंत्र रूप से काम करने दें, ताकि किसी निर्दोश के जीवन को दोषपूर्ण विवेचना से बचाया जा सके।


(लेखक अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं)


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