राजनीति में इस बात को लेकर अक्सर चर्चा होती है कि कोई व्यक्ति आज जिस मुकाम पर है उसका शुरुआती समय कैसा रहा होगा जो यहां तक पहुंचने में सफल हुआ। टीएस सिंहदेव भी उन्हीं में से एक हैं। उन्होंने जब राजनीति में क़दम रखा तो उसकी शुरुआत उन्होंने किसी छोटे-से राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर पर ही की। जिन्हें लगता है कि बाबा साहब तो सरगुजा रियासत के राजा हैं और उन्हें यूं ही सब कुछ मिल गया होगा पर ऐसा नहीं है और न ही उनका जमीनी स्तर से कोई जुड़ाव नहीं रहा है। 1983 में उन्होंने अम्बिकापुर शहर के वार्ड नंबर 20 से पहली बार पार्षद का चुनाव लड़ा था और वे 10 वर्षों तक पार्षद रहने के साथ अंबिकापुर के नगरपालिका परिषद के अध्यक्ष भी रहे।
आज के दौर में जब अधिकांश नेता चाटुकारिता करने में अपने आपको गौरवान्वित होते नजर आते हैं, वहीं टीएस बाबा वो शख्स हैं जो पार्टी हित के लिए सत्ता से टकराने में भी कभी नहीं घबराते,चाहे चुनावी घोषणा पत्र का सही मायने में अमल की बात हो या फिर अपने को मिले अधिकारों के हनन की। चाहे कांग्रेस कार्यकर्ताओं के नाराजगी की बात हो या फिर सरकार के फैसलों के बारे में बोलने की। उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि वक्त उनके साथ क्या करेगा। उनकी यही स्पष्टवादिता और बेबाक बोल जहां जनता और आम जनमानस को उनके और करीब ला दिया है तो अन्य से हट कर पार्टी के अंदर एक स्वच्छ छवि भी बनाई है।
हिंदी और अँग्रेज़ी दोनों भाषाओं पर बाबा की पकड़ अद्भुत है। सरकार में उन्हें वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाया गया तब तक अम्बिकापुर विधानसभा आरक्षित श्रेणी में हुआ करता था। 2008 में जब यह सीट सामान्य घोषित हुई तो टीएस सिंहदेव पहली बार में ही विधानसभा पहुंच गए। मानो ऐसा लग रहा था जैसे यहां की जनता इस बात का वर्षों से इंतजार कर रही थी कि अपने महाराज को कब विधानसभा भेजे। इसके बाद वे लगातार 2013 और 2018 के चुनावों में भी भारी बहुमत से चुनाव जीत कर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं।
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