आदि शक्ति, मौलिक ऊर्जा की ही अभिव्यक्ति

11-April-2024

डॉ. डीआर विश्वकर्मा


शक्ति का अर्थ बल अथवा ऊर्जा से लगाया जाता है। सारा जग ऊर्जा से ही अनुप्राणित एवम् नियंत्रित है। भारतीय संस्कृति में आदि शक्ति,परा शक्ति, दैवीय शक्ति को सभी ऊर्जाओं का मौलिक स्रोत कहा जाता है। इसी ऊर्जा के फलस्वरूप ब्रह्मांड उत्पन्न हुआ है। शक्ति को हम सभी दैवीय ऊर्जा, सृजन और प्रभावी बदलाव के रूप में देखते हैं। यही आदि शक्ति ऊर्जा को हम सभी तत्वों ऊर्ज़ाओ तथा चेतन और अचेतन के रूप में भी पाते हैं।


देवी भागवत, अथर्व वेद, मार्कण्डेय पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों के अनुसार देवी माँ आदि शक्ति की मूल हैं। सनातन धर्म के अनुसार शक्तिवाद संप्रदाय में सर्वोच्च देवी महादेवी को माना जाता है, जिन्हें परा शक्ति, आदि शक्ति, अभय शक्ति, पराम्बा, विश्वेश्वरि, विश्वात्मिका, जगतधात्री तथा जगत प्रस्वित्री भी कहते हैं। यही मौलिक ऊर्जा की अभिव्यक्ति है। यही महादेवी मौलिक ऊर्जा की स्रोत जो पराब्रह्म के रूप में शिव के बराबर है। 


वैष्णव उन्हें लक्ष्मी मानते हैं। शैव उन्हें पार्वती, दुर्गा ललिता और काली मानते हैं। जबकि शाक्त उन्हें त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, सरस्वती और काली मानते हैं। हिन्दू दर्शन में लक्ष्मी और पार्वती को महादेवी के रूप में दिव्य शक्ति से विभूषित किया जाता है। इन्हें ही पराब्रह्म के रूप में सर्वोच्च देवी की संज्ञा दी जाती है। इनका निवास मणिद्वीप में माना गया है।


महाविद्याओं में महादेवी की दस तांत्रिक देवियाँ भी हैं, जो विभिन्न उद्देश्यों के लिए विभिन्न रूपों में प्रकट होने की उनकी प्रकृति और क्षमता को दर्शाती हैं। महाविद्या शब्द का अर्थ महान ज्ञान से है।महाविद्याओं की पहचान दशवीं शताब्दी ईश्वी में की गई। दस तांत्रिक देवियों के नाम इस प्रकार हैं। काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला शामिल हैं। यही शक्तियाँ अपने विभिन्न रूपों में सभी पहलुओं में व्याप्त हैं। 


दैवीय शक्ति ही महादेवी हैं जो सभी सृजन और शक्ति का स्रोत हैं। पार्वती ही महादेवी का भौतिक प्रतिनिधित्व करती हैं जिन्हें आदि शक्ति के रूप में मान्यता है जो शक्ति पोषण भक्ति मातृत्व उर्वरता और सद्भाव की देवी कही जाती हैं। इन्हें इच्छाओं का अवतार भी कहा जाता है, इसी कारण इन्हें कामरूपा और कामेश्वरी भी पुकारते हैं।


हर संप्रदाय में आदि परा शक्ति को विभिन्न रूप में मानकर पूजा की जाती है। शाक्त सम्प्रदाय में इन्हें ब्रह्म शक्ति के रूप में पूजा जाता है, जिनके दो कुल है पहला काली कुल व दूसरा श्री कुल। कुछ और शाक्त भगवती दुर्गा को आदि शक्ति के रूप में मानते हैं। वैष्णव संप्रदाय के लोग भगवती लक्ष्मी को परा शक्ति मानते हैं। शैव संप्रदाय के लोग माता पार्वती को आदि शक्ति के रूप में मान्यता देता है, सिख संप्रदाय शक्ति को निर्गुण मानते हुए उन्हें चण्डी अकाल पुरुख की ऊर्जा शक्ति मानता है।


बायोलॉजिकली बच्चा जन्म के समय 50% आणविक डीएनए अपनी माता व 50% अपने पिता से प्राप्त करता है, परन्तु शत प्रतिशत माइटोकांड्रियल डीएनए केवल अपनी माँ से ही प्राप्त करता है।माइटोकांड्रिया एटीपी को उत्पन्न करता है, जो हमारे शरीर के लिये ऊर्जा का काम करता है, और यह केवल माँ से प्राप्त होता है। कोई माँ भी इसे अपनी माँ से ही प्राप्त करती है। इसीलिए सनातन परम्परा में ईश्वर की शक्ति माँ की शक्ति ही है। इस शक्ति को हम आदि शक्ति कहते हैं। 


आप देंखें सभी प्रकार के पूजा यज्ञ में सर्वप्रथम माँ शक्ति की पूजा की जाती है, यही कारण है माँ वंदनीय मानी जाती है। अब आइये भौतिक विज्ञान के आधार पर शक्ति की विवेचना करें। ऊर्जा को किसी आधार की ज़रूरत नहीं होती। ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है न ही विनष्ट किया जा सकता है, बल्कि इसे एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। यही ऊर्जा प्रकृति में व्याप्त है। 


हम सभी का जीवन भी ऊर्जा पर निर्भर है। वह ऊर्जा हमे भोजन के रूप में प्राप्त होती है। यही ऊर्जा प्रकृति और ब्रह्मांड में व्याप्त है। यह ऊर्जा धनात्मक और ऋणात्मक रूप में होती है। वैक्युएम एनर्जी से ब्रह्मांड की उत्पत्ति एवं डार्क एनर्जी से ब्रह्मांड का विनाश होता है। ऊर्जा ही ब्रह्माण्ड की शक्ति है जिसे हम आदि शक्ति के नाम से इंगित करते हैं। प्रकृति में व्याप्त ऊर्जा जब चेतना से संबद्ध होती है। वही प्राण ऊर्जा प्राण शक्ति कहलाती है। सारा ब्रह्मांड ऊर्जा से ही सृजित है।


पौराणिक आख्यानों में इसे ही आतंरिक ऊर्जा परम ब्रह्म के रूप में पहचानी जाती है। इसे ही आदि शक्ति, परम्बा, परा शक्ति के रूप में परिभाषित की जाती है। ब्रह्मांडीय ऊर्जा को इनवीज़िबल एनर्जी भी कहते हैं। मनीषी गण पुरुष प्रकृति को परम शक्ति मानते हैं जिसे शिव व शक्ति को यूनिवर्सल मदर आदि शक्ति कहकर भी पुकारते हैं। सनातन परम्परा में महादेवी को निराकार परम ब्रह्म जो ब्रह्मांड से भी परे एक सर्वोच्च शक्ति परमेश्वर कहा जाता है, जो न स्त्री है और न पुरुष। जिसे आदिदेव भी कहते हैं। 


ऊर्जा जब चेतन से जुड़ती है तो इच्छा रूप में ब्रह्मांड की रचना, ज्ञान रूप में संसार का पालन और क्रिया रूप में ब्रह्मांड को गति एवम् बल प्रदान करती है। प्रलय, अर्ध प्रलय, कल्प प्रलय, महाकल्प प्रलय के समय यही ऊर्जा विद्यमान रहती है और सृजन का कारक होती है। चेतन शक्ति से इच्छा व्यक्त हुई।


इच्छा से ज्ञान का उदय हुआ, ज्ञान से ही कर्म की उत्पत्ति हुई और इस प्रकार इस जगत का निर्माण हुआ। सारा जग उसी शक्ति से अनुप्राणित एवम् नियंत्रित है। सगुण रूप में उसे ब्रह्मांड की माता महादेवी जो सभी लोगों से ऊपर मणिद्वीप में निवास करती है इसे ही सर्वोच्च शक्ति के रूप में हमारे आर्ष ऋषियों ने मान्यता प्रदान की है।


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