प्रकृति और संस्कृति के संरक्षण की बात मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन से ऐसे छनकर बाहर आती है जैसे चांदनी बादलों को चीरती हुई धरा पर छा जाती है। रामायण सहित श्रीरामचरित मानस को विविध भाषाओं में लिखते हुए राम भक्त विद्वजनों ने बार बार इस बात को उल्लेखित किया है कि प्रभु श्री राम का जन्म तो राजमहल में हुआ था पर वे राजमहल में रहे ही नहीं।
प्रभु श्री राम का अधिकांश जीवन आमजनों और वनवासियों के बीच ही व्यतीत हुआ। उन्होंने आमजनों में शामिल केवट राज को गले लगाया, भीलनी शबरी को नवधा भक्ति का ज्ञान दिया, माता अहिल्या का उद्धार किया, विभीषण को श्रीलंका का राज्य दिलवाया, सुग्रीव को किष्किंधा का राजपाट दिलवाया, हर अन्यायी का अंत करके न्याय पथ का अनुगामी बनने प्रेरित किया।
वनवासी, कोल, भील, भालू, बंदर, गरुड़ की अद्भुत शक्ति को न केवल उजागर किया अपितु उनकी शक्ति को अपनी शक्ति भी बना लिया। ऐसे सभी पात्रों को जो की जंगल, पहाड़, नदियों पर ही आश्रित जीवन जीते थे, उन्हें अपना मित्र बनकर युवराज राम ने मित्रता धर्म के महानायक होने का भी दर्जा प्राप्त किया।
लंकापति महाबलशाली दशानन जिससे देवता भी घबराते थे। युद्ध में परास्त हो जाते थे। उस महाबली को प्रभु श्री राम ने आमजनों और वनवासियों की ताकत के बलबूते ही पराजित करके संदेश दिया कि अत्याचारी कितना भी पराक्रमी हो उसका अंत सुनिश्चित होता है। उसकी कमजोर कड़ियां, प्रवृतियां ही उसके विनाश का कारण बनती हैं। प्रभु श्री राम के जीवन में यह बात भी उजागर होती है कि उन्होंने मदद मांगने और मदद करने के मामले में स्वयं को सदैव अग्रणी रखा।
सदैव परछाई बनकर रहने वाले उनके अनुज लक्ष्मण बात-बात में क्रोधित हो जाते थे, किंतु प्रभु श्री राम ने उनके क्रोध को शांत करते हुए सदैव धीरज और धैर्य और दयालुता का पाठ पढ़ाया। लक्ष्मण के उबलते क्रोध को उबलते दूध में पानी छिड़क कर शांत करने की तरह उपक्रम किया।
क्रूर अत्याचारी राक्षसों के प्रति भी उदारता, दयालुता का परिचय देते हुए प्रभु श्री राम ने राक्षसी प्रवृत्ति से बाहर निकाल कर उन्हें सात्विक विचारधारा को अपनाने के लिए प्रेरित किया। यही वजह है रामायण और रामचरितमानस में ऐसे अनेक प्रसंगों का उल्लेख मिलता है जब राक्षसों ने भी प्रभु श्री राम और उनकी वानर सेना का समर्थन किया यथा समय समुचित मार्ग प्रशस्त किया।
प्रभु श्री राम के प्रति समर्पित महाबलियों शक्तिशालियों के बीच नन्ही गिलहरी का भी उल्लेख मिलता है। रामसेतु का जब निर्माण हो रहा था तो नन्ही गिलहरी भी जी जान से उसमें योगदान कर रही थी। जिसे देखकर प्रभु श्री राम ने गिलहरी की पीठ पर उंगलियों को सहलाते हुए आभार व्यक्त किया था। ऐसी मान्यता है की आज भी गिलहरियों की पीठ पर जो रेखाएं दिखाई देती हैं वह प्रभु श्री राम की उंगलियां की सूचक है।
प्रभु श्री राम का चरित्र विश्वास दिलाता है कि जो भी अपने हृदय में श्रीराम को रखते हैं तो उनका जीवन सदैव सुखमय होगा। कष्ट आने पर भी उसके निवारण का मार्ग प्रशस्त होगा। जैसे प्रभु श्री राम महल में जन्म लेने के बावजूद आजीवन कष्टों में घिरे रहे,पर टूटे बिना सही पथ पर संघर्ष से जीत प्रभु श्री राम की हुई। तभी तो तुलसीदास जी ने लिखा है तुलसी बिरवा बाग के सिंचे से कुम्हलाय, राम भरोसे जो रहे पर्वत पर लहराय।
प्रभु श्री राम के जीवन में आए उतार चढ़ाव को सुने गुने और मन वचन कर्म से प्रभु श्री राम के चरणों में स्वयं को डाल दें। यही मोक्ष का सच्चा मार्ग होगा, क्योंकि जो राम का नहीं वह किसी काम का नहीं। जय श्री राम।
विजय मिश्रा "अमित"
एम सेक्टर 2 अग्रोहा सोसायटी, रायपुर छत्तीसगढ़
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