बेजुबानों के साथ न करें क्रूरता

12-June-2024

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पशु क्रूरता के मामलों की लगातार बढ़ती घटनाएं चिंता का विषय बन गई हैं। खासतौर पर आवारा कुत्तों के प्रति होने वाली क्रूरता और उन्हें स्थानांतरित करने के प्रयासों ने एक गंभीर समस्या का रूप ले लिया है। ऐसे ही एक ताजा मामले ने पुलिस कॉलोनी, अमलीडीह में समाज के रक्षक ही भक्षक बनते नजर आए हैं। यह लेख इस मामले का विस्तृत विश्लेषण करेगा, जिसमें पशु क्रूरता के खिलाफ कानून, एनिमल एक्टिविस्ट्स की भूमिका और समाज में पशु अधिकारों के प्रति जागरूकता की आवश्यकता पर चर्चा की जाएगी।

रायपुर के अमलीडीह में पुलिस कॉलोनी के अध्यक्ष सुरेश चंद्र पर आरोप है कि उन्होंने आवारा कुत्तों को कॉलोनी से बाहर खदेड़ने के लिए कुछ डंडाधारी लोगों को बुलाया। इस घटना का वीडियो वायरल होने पर एनिमल एक्टिविस्ट्स ने विरोध जताते हुए पुलिस से उचित कार्रवाई की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि सुरेश चंद्र ने बिन मुंह, असहाय और भूखे आवारा कुत्तों को स्थानांतरित करने की साजिश रची है, जो कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और पशु क्रूरता निवारण कानून के खिलाफ है। भारत में पशु क्रूरता के खिलाफ सख्त कानून हैं।

भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के तहत किसी जानवर को नुकसान पहुंचाना, जहर देना या मारना अपराध है, जिसमें दो साल तक की सजा हो सकती है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत किसी जानवर को अनावश्यक पीड़ा पहुंचाना या उसका उत्पीड़न करना अपराध है। एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल्स, 2001 के अनुसार, किसी भी कुत्ते को एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं ले जाया जा सकता, सिवाय जब उसकी उम्र चार माह से अधिक हो और वह स्वस्थ हो।

एनिमल एक्टिविस्ट्स ने इस मामले में सक्रिय भूमिका निभाई है। उन्होंने न केवल पुलिस को इस घटना की सूचना दी, बल्कि मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से इसे व्यापक जनसमर्थन भी प्राप्त किया। उन्होंने रायपुर पुलिस से इस मामले में हस्तक्षेप कर असहाय, भूखे और बेजुबान आवारा कुत्तों को स्थानांतरित करने के यातनापूर्ण तरीकों का उपयोग करने वाले ऐसे कांस्टेबल से छुटकारा दिलाने का आग्रह किया। एनिमल एक्टिविस्ट्स का मानना है कि समाज में पशु अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी है।

उन्होंने सुझाव दिया कि पुलिस कॉलोनी में एक वर्कशॉप आयोजित की जाए, जिससे लोगों को आवारा कुत्तों के प्रति सहानुभूति और प्रेम की भावना विकसित हो। यह जागरूकता अभियान केवल एक कॉलोनी तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे व्यापक स्तर पर लागू किया जाना चाहिए ताकि समाज के सभी वर्गों में पशु अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ सके। पशु क्रूरता के खिलाफ बने कानूनों का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। स्थानीय प्रशासन और पुलिस को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी जानवर के साथ क्रूरता न हो। इसके लिए समय-समय पर निरीक्षण और जन जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।

समुदाय के सभी सदस्यों को पशु क्रूरता के खिलाफ लड़ाई में शामिल होना चाहिए। एनिमल वेलफेयर संगठनों के साथ मिलकर सामुदायिक कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं, जिनमें लोगों को पशु अधिकारों और उनसे संबंधित कानूनों की जानकारी दी जा सके। शैक्षिक संस्थानों में पशु अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। बच्चों को छोटे से ही जानवरों के प्रति सहानुभूति और प्रेम की भावना सिखाई जानी चाहिए। इससे न केवल पशु क्रूरता में कमी आएगी, बल्कि समाज में सहानुभूति और करुणा की भावना भी विकसित होगी।

रायपुर में पशु क्रूरता के मामले ने समाज में पशु अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी को उजागर किया है। यह आवश्यक है कि हम सभी मिलकर इस समस्या का समाधान करें और पशु क्रूरता के खिलाफ सख्त कदम उठाएं। कानूनों का सख्त पालन, सामुदायिक भागीदारी, और शिक्षा एवं जागरूकता के माध्यम से हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं जहां हर जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति और करुणा की भावना हो। इससे न केवल पशुओं की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि समाज में भी सकारात्मक बदलाव आएगा। भारत में पशु क्रूरता के खिलाफ कई कानूनी प्रावधान मौजूद हैं।

भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 किसी जानवर को जहर देना, उसे मारना, या उसे अपाहिज करने को अपराध मानती है। इसके अलावा, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम का उद्देश्य पशुओं को अनावश्यक पीड़ा से बचाना और उनके कल्याण को सुनिश्चित करना है। पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2001 के तहत, आवारा कुत्तों का स्थानांतरण अवैध है। इस नियम का मुख्य उद्देश्य आवारा कुत्तों की जनसंख्या को नियंत्रित करना और उनके स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करना है।

इसके तहत, आवारा कुत्तों का टीकाकरण और नसबंदी की जाती है ताकि उनकी जनसंख्या नियंत्रित हो सके और वे स्वस्थ रहें। समाज में सहानुभूति और करुणा का विकास करना अत्यंत आवश्यक है। यह केवल कानूनी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि नैतिक और मानवीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह जीवित प्राणियों के प्रति सहानुभूति रखे और उन्हें किसी भी प्रकार की पीड़ा से बचाए। समुदाय की सहभागिता पशु क्रूरता के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

सामुदायिक जागरूकता अभियान, वर्कशॉप, और शैक्षिक कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को पशु अधिकारों और उनसे संबंधित कानूनों की जानकारी दी जा सकती है। इससे समाज में पशुओं के प्रति सहानुभूति और करुणा की भावना विकसित होगी। एनिमल एक्टिविस्ट्स का मुख्य उद्देश्य पशुओं को बचाना और उनका पुनर्वास करना है। वे समय-समय पर पशु बचाव अभियान चलाते हैं और घायल या पीड़ित पशुओं को उपचार और आश्रय प्रदान करते हैं। इसके अलावा, वे पशुओं के पुनर्वास के लिए उपयुक्त स्थानों की व्यवस्था भी करते हैं।

एनिमल एक्टिविस्ट्स कानूनी मामलों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे पशु क्रूरता के मामलों में कानूनी सहायता और सलाह प्रदान करते हैं। इसके अलावा, वे अदालतों में पशु अधिकारों के लिए मुकदमे भी लड़ते हैं और न्याय की मांग करते हैं। शैक्षिक संस्थानों में पशु अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। बच्चों को छोटे से ही जानवरों के प्रति सहानुभूति और प्रेम की भावना सिखाई जानी चाहिए। इससे न केवल पशु क्रूरता में कमी आएगी, बल्कि समाज में सहानुभूति और करुणा की भावना भी विकसित होगी।

मीडिया पशु अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। समाचार पत्र, टीवी चैनल, और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से पशु क्रूरता के मामलों को उजागर किया जा सकता है और लोगों को जागरूक किया जा सकता है। रायपुर में पशु क्रूरता का मामला समाज में पशु अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी को दर्शाता है। इसे दूर करने के लिए कानूनों का सख्त पालन, सामुदायिक भागीदारी, और शिक्षा एवं जागरूकता अत्यंत आवश्यक हैं।

समाज के हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह जीवित प्राणियों के प्रति सहानुभूति और करुणा का भाव रखे। इससे न केवल पशुओं की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि समाज में भी सकारात्मक बदलाव आएगा। पशु क्रूरता के खिलाफ लड़ाई में एनिमल एक्टिविस्ट्स, सामुदायिक संगठन, और सरकार सभी को मिलकर काम करना होगा। केवल तभी हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं जहां हर जीवित प्राणी सुरक्षित और सम्मानित महसूस कर सके।


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