नक्सलियों की नकली नोट छापने की गतिविधि आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा

23-June-2024

नक्सलवाद भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती रहा है, खासकर छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में। नक्सलियों की हिंसा और आतंक की घटनाओं के अलावा, अब उन्होंने नकली नोट छापने की नई गतिविधि शुरू की है, जो न केवल राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को कमजोर करती है, बल्कि स्थानीय जनता को भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। यह लेख इस समस्या के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करेगा और इसके निवारण के उपायों पर भी प्रकाश डालेगा।


छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के सिलगेर और टेकुलागुडेम के बीच आईईडी विस्फोट में सीआरपीएफ के जवानों की शहादत ने नक्सली हिंसा की गंभीरता को उजागर किया था। इसके बाद, बस्तर क्षेत्र में नक्सलियों द्वारा नकली नोट छापने की खबर ने एक नई चिंता पैदा की है। नक्सलियों के बड़े कैडरों ने अपने लड़ाकों को नकली नोट छापने का विशेष प्रशिक्षण दिया है, जिससे वे स्थानीय बाजारों में नकली नोटों का प्रचलन कर सकें।


23 जून 2024 को, पुलिस ने सर्च अभियान के दौरान नक्सलियों द्वारा नकली नोट बनाने की मशीन, नकली नोटों के सैंपल, विस्फोटक और हथियार बरामद किए। यह बरामदगी कोराजगुड़ा के जंगल और पहाड़ी क्षेत्र में की गई थी, जहां नक्सली भागने में सफल हो गए थे। इस सघन सर्चिंग के बाद विभिन्न स्थानों पर छिपाकर रखे गए नकली नोट बनाने का उपकरण, कलर प्रिंटर मशीन, इन्वर्टर मशीन, कलर इंक, और 50, 100, 200, और 500 रुपये के नकली नोटों के सैंपल बरामद किए गए। इसके साथ ही भरमार बंदूक, वायरलेस सेट, मैग्जीन पाउच, नक्सली काली वर्दी, और भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री भी मिली।


भोले-भाले आदिवासियों को धोखे में रखकर नक्सली अंदरूनी क्षेत्रों के साप्ताहिक बाजारों में लंबे समय से नकली नोट खपा रहे थे। वर्ष 2022 में बड़े नक्सली कैडरों ने प्रत्येक एरिया कमेटी के एक-एक सदस्य को नकली नोट छापने का प्रशिक्षण दिया था। प्रशिक्षण के बाद, ये प्रशिक्षित नक्सली अपने-अपने एरिया कमेटी में नकली नोट छापकर उन्हें अंदरूनी क्षेत्रों के साप्ताहिक बाजारों में खपा रहे थे।


नकली नोटों का प्रचलन न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को कमजोर करता है, बल्कि आम जनता को भी भारी नुकसान पहुंचाता है। जब लोग नकली नोटों को असली मानकर इस्तेमाल करते हैं, तो वे सीधे तौर पर आर्थिक हानि झेलते हैं। यह न केवल उनकी मेहनत की कमाई को बर्बाद करता है, बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर भी बनाता है। इसके अलावा, नकली नोटों का प्रचलन स्थानीय व्यापार और बाजार की स्थिरता को भी खतरे में डालता है।


नकली नोट छापना और उनका प्रचलन करना राष्ट्रद्रोह के बराबर है और ऐसे मामलों में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन बस्तर में नक्सलियों द्वारा जाली नोटों को छापे जाने को लेकर एनआईए को भनक तक नहीं है। यह आश्चर्यजनक है कि इतनी गंभीर गतिविधियों के बावजूद, एनआईए ने अभी तक इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। 


पुलिस अधीक्षक किरण चौहान ने बताया कि नक्सलियों द्वारा नकली नोट छापकर उन्हें बाजार में खपाने की सूचना मिलने पर जिला बल, जिला रिजर्व पुलिस बल, बस्तर फाइटर और 50 वाहिनी केंद्रीय सुरक्षा बल की संयुक्त टीम विशेष नक्सल गश्त और सर्चिंग के लिए रवाना हुई थी। यह सर्च अभियान नक्सलियों के इस आर्थिक संसाधन पर एक बड़ा प्रहार था, जिससे उनकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने में मदद मिली।


नक्सली गतिविधियों के पीछे कई कारण होते हैं, जिनमें से सामाजिक और आर्थिक असमानता, सरकारी उपेक्षा और भूमि विवाद प्रमुख हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सामाजिक और आर्थिक असमानता, बेरोजगारी, गरीबी, और शिक्षा की कमी नक्सली हिंसा को बढ़ावा देती है। इन क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं का अभाव और विकास कार्यों की धीमी गति भी नक्सली गतिविधियों को प्रोत्साहित करती है। भूमि विवाद और वन अधिकारों का सवाल भी नक्सली गतिविधियों के पीछे का एक बड़ा कारण है।

नक्सली समस्या का समाधान केवल सैन्य बल से नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। स्थानीय जनसंख्या के लिए विकास कार्यों का विस्तार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार, और रोजगार के अवसर प्रदान करना आवश्यक है। स्थानीय समुदायों के साथ संवाद स्थापित करना और उन्हें विकास की मुख्यधारा में शामिल करना महत्वपूर्ण है। सुरक्षा बलों को बेहतर संसाधन और तकनीकी सहयोग प्रदान करना, ताकि वे नक्सली हिंसा का प्रभावी तरीके से मुकाबला कर सकें। एनआईए और अन्य राष्ट्रीय एजेंसियों को नक्सली गतिविधियों पर नजर रखने और उनके खिलाफ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।


छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में नक्सलियों द्वारा नकली नोट छापने की घटना न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि स्थानीय जनसंख्या के लिए भी एक गंभीर समस्या है। यह घटना न केवल नक्सलियों की क्रूरता और उनके आर्थिक संसाधनों की व्यापकता को उजागर करती है, बल्कि सरकार और सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी चुनौती भी पेश करती है। 


इस समस्या का समाधान केवल सैन्य कार्रवाई से नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें विकास, शिक्षा, संवाद और सुरक्षा बलों का समर्थन शामिल हो। सरकार और समाज को मिलकर इस चुनौती का सामना करना होगा, ताकि बस्तर क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बहाल की जा सके और नक्सलियों की गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सके।

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